एक भारतीय ने दूसरे भारतीय को रिश्वत दी, कार्रवाई अमेरिका क्यों करेगा? समझिए मामला

एक भारतीय ने दूसरे भारतीय को रिश्वत दी, कार्रवाई अमेरिका क्यों करेगा? समझिए मामला
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नई दिल्ली: अमेरिका में गौतम अडानी और उनके भतीजे सागर अडानी पर भारतीय अधिकारियों को घूस देने के गंभीर आरोप लगाए गए हैं। अमेरिकी अभियोजन पक्ष का दावा है कि अडानी ग्रुप ने भारत में बिजली आपूर्ति के ठेके हासिल करने के लिए भारतीय अधिकारियों को लगभग 250 मिलियन डॉलर (करीब 2200 करोड़ रुपये) की रिश्वत दी। न्यूयॉर्क की एक अदालत ने इस मामले में गौतम अडानी और सागर अडानी के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी कर दिया है।  लेकिन, इसमें एक बड़ा सवाल ये उठ रहा है कि, अगर एक भारतीय (अडानी)  ने दूसरे भारतीयों (अफसरों) को अगर रिश्वत दी भी है, तो इसे भारत सरकार और प्रशासन निपटेगा, इसमें अमेरिका को दिलचस्पी क्यों? आइए समझते हैं मामला। 

दरअसल, अमेरिकी अधिकारियों ने इस मामले को गंभीरता से लिया है, क्योंकि इसमें अमेरिकी निवेशकों का पैसा भी शामिल है। यह मामला 2021 में अडानी ग्रीन द्वारा जारी किए गए 750 मिलियन डॉलर के कॉर्पोरेट बांड से जुड़ा है, जिसमें अमेरिकी निवेशकों ने भी पैसा लगाया था। अडानी ग्रीन ने बांड खरीदने वाले निवेशकों को बताया था कि कंपनी किसी भी प्रकार की रिश्वत या भ्रष्टाचार में शामिल नहीं है। लेकिन अमेरिकी प्रतिभूति और विनिमय आयोग (SEC) का दावा है कि यह जानकारी झूठी थी।  SEC ने आरोप लगाया है कि गौतम अडानी, सागर अडानी और अडानी ग्रीन के प्रबंध निदेशक विनीत जैन ने भारतीय अधिकारियों को रिश्वत देने की योजना बनाई और इसे छिपाने के लिए झूठ बोला। रिश्वतखोरी से अडानी ग्रुप को अरबों डॉलर के ठेके मिलने की उम्मीद थी। SEC का कहना है कि 2020 से 2024 के बीच यह रिश्वत योजना बनाई गई, जिसमें भारत सरकार के अधिकारियों को घूस देकर सोलर एनर्जी प्रोजेक्ट के अनुबंध हासिल किए गए।  

रिश्वतखोरी के आरोप केवल अडानी ग्रुप तक सीमित नहीं हैं। फ्रांसीसी नागरिक सिरिल सेबेस्टियन डोमिनिक कैबेन्स पर भी इसमें शामिल होने का आरोप है। कैबेन्स एज़्योर पावर के बोर्ड में निदेशक थे, जो न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध एक कंपनी थी। SEC ने आरोप लगाया है कि एज़्योर और अडानी ग्रीन के वरिष्ठ अधिकारियों ने भारत की राज्य बिजली वितरण कंपनियों को उनके पक्ष में ऊर्जा खरीदने के लिए रिश्वत देने की योजना बनाई। SEC का कहना है कि दी गई या वादा की गई रिश्वत में एक तिहाई हिस्सा एज़्योर का और बाकी दो तिहाई अडानी ग्रुप का था। अमेरिकी कानून, विशेष रूप से *Foreign Corrupt Practices Act (FCPA)*, के तहत यह अपराध है। यह कानून अमेरिकी बाजारों में सूचीबद्ध कंपनियों को विदेशों में रिश्वत देने से रोकता है। चूंकि अडानी ग्रीन और एज़्योर की प्रतिभूतियाँ अमेरिकी निवेशकों के पास थीं, इसलिए यह मामला सीधे अमेरिकी अधिकारियों के अधिकार क्षेत्र में आता है।  

अमेरिकी अटॉर्नी ब्रेओन पीस ने कहा कि अडानी ग्रुप ने रिश्वत देने की एक विस्तृत योजना बनाई और इसे लागू किया। आरोप है कि गौतम अडानी ने व्यक्तिगत रूप से भारतीय अधिकारियों से मुलाकात की और रिश्वत योजना के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की। SEC का दावा है कि अडानी ग्रीन और एज़्योर ने अमेरिकी और अंतर्राष्ट्रीय निवेशकों से सैकड़ों मिलियन डॉलर जुटाने के लिए अपने भ्रष्टाचार को छिपाया।  यह मामला इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें अमेरिका में दर्ज कंपनियों के बांड और निवेशकों की सुरक्षा का सवाल है। अमेरिकी निवेशक जब किसी कंपनी के बांड खरीदते हैं, तो वे उस कंपनी की पारदर्शिता और नैतिक आचरण पर भरोसा करते हैं। SEC का कहना है कि अडानी ग्रीन ने अमेरिकी निवेशकों को रिश्वतखोरी से जुड़ी सच्चाई नहीं बताई, जिससे उनका भरोसा टूट गया।  

इसके अलावा, SEC ने यह भी आरोप लगाया है कि अडानी ग्रुप और एज़्योर ने रिश्वतखोरी और अनुचित दबाव डालने की रणनीति का दस्तावेजीकरण भी किया। इसमें इलेक्ट्रॉनिक संदेश और अन्य दस्तावेज शामिल हैं, जो भ्रष्टाचार के प्रमाण हो सकते हैं। यह मामला अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अडानी ग्रुप के लिए बड़ी चुनौती बन सकता है। SEC और अमेरिकी अभियोजकों ने इस मुद्दे को गंभीरता से लिया है और जूरी ट्रायल की मांग की है। यदि आरोप साबित होते हैं, तो अडानी ग्रुप को भारी जुर्माना भरना पड़ सकता है, और इससे उनकी अंतर्राष्ट्रीय छवि को भी नुकसान हो सकता है।  

इस मामले ने भारत और अमेरिका दोनों में चर्चाएँ शुरू कर दी हैं। भारत में यह सवाल उठ रहा है कि यदि रिश्वत भारतीय अधिकारियों को दी गई थी, तो कार्रवाई भारत में क्यों नहीं हो रही। वहीं, अमेरिकी अधिकारियों का कहना है कि यह मामला अमेरिकी निवेशकों की सुरक्षा और पारदर्शिता से जुड़ा है, इसलिए वे इसमें हस्तक्षेप कर रहे हैं।  अडानी ग्रुप की तरफ से इस मामले पर अब तक कोई स्पष्ट प्रतिक्रिया नहीं आई है। लेकिन यह मामला उनकी साख और अंतर्राष्ट्रीय कारोबार पर गंभीर असर डाल सकता है। अमेरिकी कानून के तहत लगाए गए ये आरोप अडानी ग्रुप की मौजूदा और भविष्य की वित्तीय गतिविधियों को प्रभावित कर सकते हैं।  

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