नई दिल्ली: मंगलवार को लोकसभा में 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' विधेयक पेश किया गया, तत्पश्चात, इस पर राजनीतिक घमासान तेज हो गया। विधेयक के पेश होने के बाद, विपक्ष ने इसका विरोध करते हुए तीव्र प्रतिक्रिया व्यक्त की। इसके मद्देनजर सरकार ने इसे जॉइंट पार्लियामेंटरी कमिटी (जेपीसी) को भेजने का निर्णय लिया है, जिससे विधेयक की विस्तृत चर्चा हो सके।
क्या हैं "एक देश, एक चुनाव" बिल?
"एक देश, एक चुनाव" का अर्थ है कि पूरे देश में एक साथ सभी चुनाव होंगे, चाहे वह लोकसभा चुनाव हो, राज्य विधानसभा चुनाव, नगरपालिकाओं के चुनाव या पंचायत चुनाव। इस प्रस्ताव का उद्देश्य चुनावी प्रक्रिया को सरल और प्रभावी बनाना है, जिससे चुनावी लागत कम हो सके, समय की बचत हो, और चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता बनी रहे। वर्तमान में भारत में विभिन्न चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं, जिससे सरकारी कार्यों में रुकावट आ सकती है तथा चुनावी प्रक्रिया पर भारी खर्च आता है।
इस बिल पर विचार करने के लिए 2 सितंबर 2023 को एक विशेष समिति का गठन किया गया था। इस समिति की अध्यक्षता भारत के पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने की थी। समिति में विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि शामिल थे, तथा इसका उद्देश्य इस प्रस्ताव की संभावनाओं और चुनौतियों का अध्ययन करना था। समिति ने अपनी रिपोर्ट 14 मार्च 2024 को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंपी, जिसमें यह सुझाव दिया गया कि एक साथ चुनावों का आयोजन चुनावी प्रक्रिया में परिवर्तन ला सकता है। समिति ने यह माना कि एक साथ चुनाव होने से मतदाता की भागीदारी बढ़ सकती है, चुनावों में पारदर्शिता बढ़ेगी, तथा संसदीय और राज्य विधानसभा चुनावों में तालमेल स्थापित हो सकेगा।
विपक्षी दलों का विरोध:
कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, डीएमके, समाजवादी पार्टी, और कई अन्य विपक्षी दलों ने इस विधेयक का विरोध किया है। उनका कहना है कि इस विधेयक से देश की लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को खतरा हो सकता है। उनका यह भी कहना है कि राज्यों में चुनाव अलग-अलग समय पर आयोजित होते हैं, ताकि राज्यों को अपने मुद्दों पर ध्यान देने का पर्याप्त समय मिल सके। वे यह भी तर्क दे रहे हैं कि यह विधेयक राज्यों के चुनावों को केंद्र सरकार के नियंत्रण में लाने का प्रयास हो सकता है, जो संघीय ढांचे के खिलाफ है।
समर्थक दलों की स्थिति:
भा.ज.पा. और उसके सहयोगी दल इस विधेयक के पक्ष में हैं। बीजू जनता दल (BJD), वाईएसआर कांग्रेस, और कुछ अन्य गैर-एनडीए दल भी इस विधेयक का समर्थन कर रहे हैं। इन दलों का कहना है कि यह कदम चुनावी प्रक्रिया को अधिक व्यवस्थित बनाएगा और चुनावों के दौरान होने वाली अराजकता और खर्चों को कम करेगा। उनका मानना है कि अगर यह विधेयक लागू होता है, तो इससे देश में चुनावी सुधार की दिशा में बड़ा कदम बढ़ेगा।
लोकसभा में मतविभाजन:
विधेयक के पेश होने पर विपक्ष ने लोकसभा में मतविभाजन की मांग की, जिसे स्वीकार करते हुए वोटिंग कराई गई। मतदान के परिणामस्वरूप, विधेयक को सदन में पेश किए जाने के पक्ष में 269 वोट पड़े, जबकि विरोध में 198 वोट पड़े। यह दिखाता है कि सरकार के पास विधेयक को आगे बढ़ाने के लिए पर्याप्त समर्थन था, हालांकि विपक्षी दलों ने इसे लेकर अपनी आपत्ति व्यक्त की। इस मतविभाजन के बाद, अब यह विधेयक संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) को भेजा जाएगा, जहां इसकी विस्तृत जांच की जाएगी और इस पर अगले चरण की चर्चा की जाएगी।
आगे की प्रक्रिया:
अब, इस विधेयक को जेपीसी के पास भेजने की औपचारिकता पूरी की जाएगी, जहां विधेयक की सभी बारीकियों पर चर्चा होगी। तत्पश्चात, अगर जेपीसी रिपोर्ट प्रस्तुत करती है, तो उसे संसद में बहस और मतदान के लिए लाया जाएगा। यह प्रक्रिया लंबी हो सकती है तथा इसे लागू करने के लिए संविधान में संशोधन की आवश्यकता भी हो सकती है।