कोरोना महामारी के कारण डायबिटीज की बीमारी भी विश्व भर के लिए एक बड़ी चुनौती बनकर उभरी है। कई रिपोर्ट्स के अनुसार, कोरोना के पश्चात् से भारत सहित दुनिया भर के देशों में इस बीमारी के प्रबंधन में कमी दर्ज की गई जिसका परिणाम यह हुआ कि कोरोना महामारी के साथ ही हमें डायबिटीज का भयावह रूप भी देखना पड़ रहा है। डायबिटीज में ब्लड शुगर की अनदेखी एवं नियमित तौर पर जांच की कमी डायबिटीज रोगियों को मौत के मुंह तक ले जा सकती है।
दुनिया में चीन के पश्चात् भारत में सबसे अधिक डायबिटीज के मरीज हैं। यह एक ऐसी बीमारी है जो मरीज के हर अंग को प्रभावित करती है। देश में तकरीबन 7.7 करोड़ लोग डायबिटीज से पीड़ित हैं तथा इसमें 1.21 करोड़ लोग 65 साल से कम के हैं तथा कहा जा रहा है कि 2045 तक ये आंकड़ा 2.7 करोड़ के पार हो जाएगा। बोला जा सकता है कि भारत में प्रत्येक 11 व्यक्तियों में से एक व्यक्ति को डायबिटीज है। डायबिटीज यूके की एक रिपोर्ट के अनुसार, इंग्लैंड में बीते वर्ष डायबिटीज के कारण 7,000 ज्यादा व्यक्तियों की जान गई जो आंकड़ा सामान्य से ज्यादा था। रिपोर्ट में इसकी वजह यह बताई गई कि महामारी के कारण डायबिटीज रोगियों के समय पर हेल्थ चेकअप्स नहीं हो पाए थे।
डायबिटीज में रेगुलर चेकअप्स और बीमारी का ठीक तरह से प्रबंधन हार्ट अटैक एवं अंगों के खराब होने का खतरा कम करता है। ऐसा ना होने पर डायबिटीज की बीमारी मरीज के शरीर को भीतर ही भीतर खोखला करती जाती है। वहीं, ब्रिटेन में बहुत सारे लोगों के लिए इस बीमारी में अकेले रहना बीमारी को और ज्यादा चुनौतीपूर्ण बनाता है। ब्रिटेन की राष्ट्रीय स्वास्थ्य एजेंसी एनएचएस इंग्लैंड ने बताया कि महामारी के पश्चात् डायबिटीज से निपटने के लिए पहले की भांति जांच, उपचार एवं नियमित देखभाल को प्रमुख प्राथमिकता बनाना होगा। डायबिटीज यूके ने बताया कि ब्रिटेन में 50 लाख से ज्यादा लोग डायबिटीज से पीड़ित हैं जबकि 2021-22 के बीच तकरीबन 19 लाख लोग अपनी जरूरी जांच नहीं करवा पाए थे। महामारी के चलते डायबिटीज के प्रबंधन एवं देखभाल में कमी मौजूदा स्थिति के लिए जिम्मेदार है जिसके कारण डायबिटीज मरीजों की मौत का आंकड़ा सामान्य से ज्यादा बढ़ा है।
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