नई दिल्ली: सियासी दलों द्वारा फ्रीबीज यानी मुफ्त की सौगातें बांटने के मामले पर निर्वाचन आयोग ने तमाम पार्टियों से राय मांगी थी। हालांकि, बताया जा रहा है कि सिर्फ कुछ ही पार्टियों ने इस पर अपना जवाब आयोग को भेजा है। निर्वाचन आयोग ने सभी राष्ट्रीय और राज्यस्तरीय सियासी दलों से इस मामले पर उनकी राय मांग थी। आयोग ने 19 अक्टूबर तक सभी सियासी दलों से मसले पर जवाब देने के लिए कहा था। बताया जा रहा है कि निर्वाचन आयोग ने फ्रीबीज के दूरगामी प्रभाव के आधार पर सियासी दलों से उनकी राय मांगी थी। आधिकारिक सूत्रों के अनुसार, केवल 7 राजनीतिक दलों ने इस पर जवाब दिया है।
इससे पहले शीर्ष अदालत ने मामले पर फैसला सुनाते हुए इसे 3 जजों की पीठ के पास भेज दिया था। चुनाव के दौरान फ्री की योजनाओं की घोषणा और बाद में उनके अमल से इकॉनमी को नुकसान हो रहा है। शीर्ष अदालत के वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा दाखिल की गई एक जनहित याचिका पर कोर्ट का यह फैसला आया था। अदालत ने कहा कि फ्रीबीज देने में टैक्सपेयर का महत्वपूर्ण धन खर्च किया जाता है। हालांकि, सभी योजना पर खर्च फ्रीबीज नहीं होते। शीर्ष अदालत ने कहा कि था जब यह कोर्ट नीतिगत मामले से निपटती है, तो ऐसा मामला कोर्ट के दायरे या अधिकार क्षेत्र से बाहर होता है। हमने इस मुद्दे पर एक श्वेत पत्र तैयार करने के लिए एक समिति का सुझाव देने के संबंध में सोचा और यदि एक सर्वदलीय बैठक बुलाई जाए तो मुद्दे पर व्यापक बहस की आवश्यकता को पूरा किया जा सकता है।
कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा था कि सरकार को सर्वदलीय बैठक बुलाकर चर्चा करनी चाहिए। इसके लिए कमेटी बनाना अच्छा रहेगा। शीर्ष अदालत ने कहा कि, कुछ सवाल हैं जैसे कि न्यायिक हस्तक्षेप का दायरा क्या है? क्या कोर्ट किसी भी योजना को लागू करने योग्य आदेश पारित कर सकती है? समिति की रचना क्या होनी चाहिए? कुछ पार्टी का कहना है कि सुब्रमण्यम बालाजी 2013 के निर्णय पर भी पुनर्विचार करने की आवश्यकता है।
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