भारत की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट ने सभी सरकारी और निजी लैब में कोरोना की मुफ्त जांच किए जाने के आदेश में सोमवार को संशोधन कर दिया है. कोर्ट के संशोधित आदेश के मुताबिक सिर्फ गरीबों यानी आर्थिक रूप से कमजोर लोगों की ही निजी लैब में कोरोना की मुफ्त जांच होगी. जो लोग पैसा दे सकते हैं उनसे निजी लैब भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) द्वारा तय कीमत (4500 रुपये) वसूल सकती हैं. सुप्रीम कोर्ट ने संशोधित आदेश में कहा है कि आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के लाभार्थियों को पहले से ही निजी लैब में मुफ्त जांच का लाभ मिल रहा है. इसके अलावा सरकार आर्थिक रूप से कमजोर अन्य श्रेणियों को भी मुफ्त जांच के दायरे में ला सकती है.
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इस मामले को लेकर शीर्ष कोर्ट ने आदेश में संशोधन करते हुए सरकार से यह भी कहा है कि आयुष्मान भारत के लाभार्थियों के अलावा गरीब वर्ग के अन्य लोगों जैसे असंगठित क्षेत्र के मजदूरों व निम्न आय वर्ग की अन्य श्रेणियों को भी मुफ्त जांच के लाभ में शामिल करने पर विचार करे. सरकार निजी लैब में मुफ्त जांच के मामलों में शुल्क प्रतिपूर्ति के बारे में उचित दिशा निर्देश जारी कर सकती है. सरकार इस आदेश और तय गाइडलाइन का प्रचार करे ताकि लाभार्थियों को इसकी जानकारी हो सके.
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आपकी जानकारी के लिए बता दे कि ये आदेश जस्टिस अशोक भूषण और एस. रविंद्र भट की पीठ ने दिल्ली के रहने वाले डॉक्टर कौशल कांत मिश्रा की आदेश में संशोधन करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई के बाद दिए. याचिका में कहा गया था कि निजी लैब में कोरोना की जांच सिर्फ आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए ही मुफ्त होनी चाहिए. जो लोग पैसे दे सकते हैं उनसे पैसे लिए जाने चाहिए. याचिकाकर्ता का कहना था कि निजी लैब में सभी की जांच मुफ्त करने से न सिर्फ आर्थिक बोझ बढ़ेगा और बल्कि निजी लैब जांच करने से भी बचेंगी.
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