नई दिल्ली: संसद का शीतकालीन सत्र शुरू होते ही सदन में हंगामे का सिलसिला जारी है। कांग्रेस समेत विपक्षी दल लगातार अडानी मामले और संभल मस्जिद विवाद पर सरकार को घेरने की कोशिश कर रहे हैं, जिसके चलते संसद में कामकाज बुरी तरह प्रभावित हुआ है। पिछले हफ्ते पूरे सत्र में केवल 160 मिनट ही कामकाज हो पाया, जबकि अधिकांश समय हंगामे के कारण कार्यवाही स्थगित करनी पड़ी। इस बीच, विपक्ष अब राज्यसभा के सभापति और उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की तैयारी में जुट गया है, जिससे संसद का बचा हुआ समय भी हंगामे की भेंट चढ़ने की आशंका बढ़ गई है।
बताया जा रहा है कि विपक्षी गठबंधन इंडिया ब्लॉक ने सभापति धनखड़ पर पक्षपात का आरोप लगाते हुए उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव तैयार कर लिया है। इस प्रस्ताव पर 70 सदस्यों के हस्ताक्षर हो चुके हैं, जबकि नियम के तहत केवल 50 सदस्यों के समर्थन की आवश्यकता होती है। विपक्षी दल मंगलवार को राज्यसभा में यह प्रस्ताव पेश कर सकते हैं। इसमें समाजवादी पार्टी (सपा) और तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के सांसद भी शामिल हो गए हैं, जिन्होंने पहले इस तरह के आंदोलनों से दूरी बना रखी थी।
इस प्रस्ताव के पीछे तात्कालिक कारण सोमवार को जॉर्ज सोरोस के मुद्दे पर हुए हंगामे को बताया जा रहा है। इस दौरान कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने सभापति के फैसलों पर नाराजगी जताई। विपक्षी सांसदों ने आरोप लगाया कि सभापति ने नियमों को ताक पर रखकर चर्चा की अनुमति दी और बीजेपी सांसदों को बोलने का विशेष अवसर दिया। कांग्रेस सांसद दिग्विजय सिंह और राजीव शुक्ला ने इस पर आपत्ति जताते हुए सभापति की निष्पक्षता पर सवाल खड़े किए।
गौरतलब है कि यह कोई पहला मौका नहीं है जब विपक्ष ने राज्यसभा के सभापति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की बात की हो। संसद के पिछले मॉनसून सत्र में भी ऐसी चर्चा हुई थी, लेकिन तब यह मुद्दा ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था। अब, शीतकालीन सत्र में यह प्रस्ताव एक बार फिर उभर कर सामने आया है।
सवाल यह है कि क्या संसद का बचा हुआ समय इस राजनीतिक खींचतान की भेंट चढ़ जाएगा? विपक्ष के तीखे हमलों और लगातार हंगामे के कारण कई अहम बिल सदन में लंबित हैं। अब तक जनहित से जुड़े किसी भी विधेयक पर न तो चर्चा हो पाई है और न ही उन्हें पास किया जा सका है। अगर यह अविश्वास प्रस्ताव सदन में लाया जाता है, तो यह तय है कि बहुमूल्य समय और भी अधिक विवादों में उलझ जाएगा।
क्या सरकार और विपक्ष के बीच यह तनातनी सिर्फ राजनीतिक मजबूरी है, या इसके पीछे जनहित की अनदेखी भी शामिल है? इस सवाल का जवाब संसद के इस सत्र के शेष दिनों में ही मिलेगा, लेकिन एक बात साफ है—संसद का यह सत्र अब तक कार्यक्षमता के मामले में बेहद निराशाजनक रहा है।