नई दिल्ली: प्रवर्तन निदेशालय (ED) के अधिकारों पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद भी विपक्षी पार्टियों ने फैसले की समीक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट जाने का निर्णय लिया है। दरअसल, 27 जुलाई को शीर्ष अदालत ने PMLA अधिनियम के 2019 संशोधन पर याचिकाकर्ताओं की दलील को खारिज करते हुए कहा था कि ED के अधिकार कायम रहेंगे। याचिकाकर्ताओं ने PMLA के तहत गिरफ्तारी, जमानत, संपत्ति की जब्ती के अधिकार की वैधानिकता पर सवाल खड़े किए थे।
विपक्षी दलों के नेताओं के खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय (ED) के ताबड़तोड़ एक्शन और 27 जुलाई को 'सुप्रीम' फैसले के बाद विपक्षी दलों के नेता संयुक्त रूप से शीर्ष अदालत जाने की तैयारी कर रहे हैं। विपक्षी नेताओं की दलील है कि सरकार द्वारा ED को उनके खिलाफ "घातक हथियार" के रूप में उपयोग किया जा रहा है, जो "लोकतंत्र पर गंभीर हमला" है। विपक्षी नेताओं का सर्वोच्च न्यायालय जाने पर विचार इसलिए भी किया जा रहा है, क्योंकि 27 जुलाई को दिए अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने फाइनेंस बिल के जरिये PMLA में किए गए संशोधन से संबंधित मामले को सात न्यायमूर्तियों की बेंच के सामने भेज दिया है।
रविवार को संपन्न हुई CPM की केंद्रीय समिति की मीटिंग में बोलते हुए, पार्टी महासचिव सीताराम येचुरी ने कहा कि, 'सभी विपक्षी दल एक साथ इस पर चर्चा कर रहे हैं और जल्द ही एक संयुक्त बयान जारी किया जाएगा।' यह अभी तक साफ़ नहीं है कि क्या सियासी दल स्वयं याचिकाकर्ता के रूप में कोर्ट का रुख करेंगे या किसी अन्य व्यक्ति के जरिए समीक्षा की मांग करेंगे।
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