नई दिल्ली: संसद के मौजूदा मानसून सत्र में राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (NCERT) के पाठ्यक्रम में हाल ही में किए गए बदलावों को लेकर लोकसभा में विपक्षी दलों और सत्तारूढ़ दल के बीच गरमागरम बहस हुई। यह चर्चा लोकसभा में शिक्षा मंत्रालय के लिए अनुदान की मांग पर बहस के दौरान हुई, जिसे बाद में बिना किसी बदलाव के ध्वनिमत से पारित कर दिया गया।
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने केंद्र सरकार पर मौजूदा पाठ्यपुस्तकों में हेराफेरी करने का आरोप लगाया। ओवैसी ने कहा कि, "सरकार की नीतियों और मुसलमानों के शिक्षा में पिछड़ेपन के बीच सीधा संबंध है। उच्च शिक्षा और स्कूली शिक्षा दोनों में, मुसलमान औपचारिक शिक्षा प्राप्त करना चाहते हैं, लेकिन सरकारी उदासीनता और लापरवाही के कारण, मुस्लिम बच्चे किसी भी अन्य समुदाय के बच्चों की तुलना में शिक्षा प्रणाली से जल्दी बाहर हो जाते हैं।" कांग्रेस ने भी ओवैसी के समर्थन में बयान दिया। कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद ने भी दोहराया कि पाठ्यपुस्तकों से मुगलों के नाम हटा देने मात्र से उनकी ऐतिहासिक उपस्थिति समाप्त नहीं हो सकती।
जावेद ने कहा कि, "मुगल 330 साल तक यहां रहे, सिर्फ नाम हटा देने से वे नहीं हटेंगे।" उन्होंने कहा कि, ‘‘अगर इस देश में मुसलमान नहीं होते, तो भाजपा अपना खाता भी नहीं खोल पाती।’’ इस दौरान विपक्ष ने ना सिर्फ पाठ्यपुस्तक संशोधन मुद्दा, बल्कि विपक्ष ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (NEP) पर भी सरकार को घेरने की कोशिश की। विपक्षी पार्टी के सांसदों की टिप्पणियों पर प्रतिक्रिया देते हुए केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने NEP का बचाव करते हुए कहा कि यह जवाबदेही, सामर्थ्य, पहुंच, समानता और गुणवत्ता के सिद्धांतों पर आधारित है।
उन्होंने 2013-14 से उच्च शिक्षा पर व्यय में 63% तथा प्राथमिक शिक्षा पर 40% की वृद्धि पर प्रकाश डाला। प्रधान ने यह भी कहा कि नई शिक्षा पद्धति में 5+3+3+4 प्रणाली शामिल है और कहा कि महिला शिक्षकों की संख्या 36 लाख से बढ़कर 48 लाख हो गई है। NCERT पाठ्यक्रम पर विवाद को संबोधित करते हुए प्रधान ने कहा, "क्या भारतीय शिक्षा प्रणाली में पश्चिमी प्रभाव को खत्म करना होगा?" प्रधान ने कहा कि, " राष्ट्रीय शिक्षा नीति केवल 60 पन्नों का नीतिगत दस्तावेज नहीं है। यह भारत के पुनर्निर्माण, विश्व में भाईचारा बढ़ाने और वैश्विक समस्याओं के समाधान के लिए एक दार्शनिक तत्व है। आज पूरा देश इसे सर्वसम्मति से स्वीकार करता है।"
इसी तरह की भावनाओं को प्रतिध्वनित करते हुए, भाजपा सांसद संबित पात्रा ने विपक्षी दलों पर आरक्षण के संबंध में पाखंड का आरोप लगाया और दावा किया कि कांग्रेस शासन के दौरान जामिया मिलिया इस्लामिया और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए कोटा हटा दिया गया था। पात्रा ने कहा, ‘‘कांग्रेस को इसका जवाब देना होगा।’’ उन्होंने शिक्षा के लिए बजट आवंटन में 1.48 लाख करोड़ रुपये की वृद्धि पर प्रकाश डाला और कौशल एवं नवाचार के माध्यम से वैश्विक समाधान प्रदाता बनने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता पर बल दिया।
तृणमूल कांग्रेस (TMC) सांसद प्रतिमा मंडल ने भी महत्वपूर्ण मुस्लिम शासकों पर अध्यायों को हटाने के लिए सरकार पर सवाल उठाते हुए कहा कि, "वर्तमान सरकार के तहत पाठ्यपुस्तकों का व्यवस्थित संशोधन हमारे बच्चों की बौद्धिक अखंडता के लिए खतरा पैदा करता है।" उन्होंने 2018 में पाठ्यक्रम से डार्विन के विकासवाद के सिद्धांत को हटाये जाने का भी उल्लेख किया तथा कहा कि 2022-23 तक इसे पाठ्यपुस्तकों से पूरी तरह हटा दिया गया है। उन्होंने कहा, "मुगल शासन, गुजरात दंगों पर अध्यायों को हटाने की शिक्षाविदों द्वारा व्यापक आलोचना की गई है। ये परिवर्तन बौद्धिक ठहराव, राजनीतिक हेरफेर को बढ़ावा दे रहे हैं और भारतीय छात्रों की बुद्धि को निशाना बना रहे हैं।"
दूसरी तरफ, भाजपा सांसद तेजस्वी सूर्या ने सरकार की पहल की प्रशंसा करते हुए तर्क दिया कि NEP महत्वपूर्ण चुनौतियों का समाधान करती है और मातृभाषा में शिक्षा से कई लोगों को लाभ होगा। उन्होंने दस साल तक मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू करने में विफल रहने के लिए कांग्रेस की आलोचना की और दावा किया कि, “अगर कोई पार्टी एससी, एसटी, ओबीसी विरोधी है, तो वह कांग्रेस है।”
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