नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने शाही ईदगाह प्रबंध समिति को रानी लक्ष्मीबाई की प्रतिमा स्थापित करने का विरोध करने के लिए कड़ी फटकार लगाई। अदालत ने कहा कि समिति अपनी याचिकाओं के जरिए सांप्रदायिक राजनीति कर रही है। इसके बाद, शुक्रवार को मुस्लिम संस्था ने अदालत के समक्ष माफीनामा दायर किया और सूचित किया कि उसने अपनी याचिका वापस ले ली है।
25 सितंबर को सुनवाई के दौरान, उच्च न्यायालय ने शाही ईदगाह प्रबंध समिति की "निंदनीय दलीलों" के लिए आलोचना की और कहा कि समिति को अपनी याचिका वापस लेनी चाहिए। अदालत ने समिति को पहले माफी मांगने का निर्देश दिया, साथ ही यह भी कहा कि याचिका खारिज करने वाली पीठ के खिलाफ लगाए गए आरोपों को हटाने के लिए आवेदन प्रस्तुत करना होगा। दरअसल, पहले मुस्लिम पक्ष, ईदगाह की जमीन को वक्फ संपत्ति होने का दावा कर रहा था, लेकिन अदालत ने इसे दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) की संपत्ति बताया था। मुस्लिम पक्ष उस जमीन पर रानी लक्ष्मीबाई की प्रतिमा लगाने का पुरजोर विरोध कर रहा था, लेकिन अदालत में उसकी एक ना चली और उसे माफ़ी मांगनी पड़ी।
मुख्य न्यायाधीश मनमोहन की अध्यक्षता वाली पीठ ने मामले की सुनवाई को मंगलवार तक के लिए स्थगित कर दिया, ताकि दस्तावेजों को रिकॉर्ड पर लाया जा सके। इससे पहले, एक खंडपीठ ने समिति की याचिका को खारिज कर दिया था, जिसे समिति ने चुनौती दी थी। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि रानी लक्ष्मीबाई की प्रतिमा की स्थापना के खिलाफ याचिका इसलिए खारिज की गई क्योंकि इससे किसी भी धार्मिक प्रार्थना या अधिकार पर खतरा नहीं था। न्यायालय ने टिप्पणी की कि इतिहास को सांप्रदायिक आधार पर विभाजित नहीं किया जाना चाहिए, और झांसी की रानी को एक राष्ट्रीय नायक के रूप में देखा जाना चाहिए, जो सभी धार्मिक सीमाओं से ऊपर उठकर खड़ी होती हैं।
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