संसद के नए भवन के उद्घाटन समारोह को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच रार बढ़ती ही जा रही है। दोनों के मध्य पनपा गतिरोध कम होने का नाम ही नहीं ले रहा है। लगभग 19 राजनीतिक दलों ने संसद के उद्घाटन समारोह का बहिष्कार भी कर दिया है। विपक्ष का बोलना है कि देश की पहली महिला आदिवासी राष्ट्रपति को समारोह में न बुलाकर बीजेपी ने लोकतंत्र का अपमान किया है। साथ ही इस केस में विपक्षी दलों ने 'भाजपा' का दांव, बीजेपी पर ही चल दिया है। विपक्षी दलों ने इस बारें में बोला है कि, जब संसद के नए परिसर का भूमि पूजन किया गया, तब भी तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को नहीं बुलाया गया।
बीजेपी ने कोविंद को राष्ट्रपति बनाकर यह बताने की कोशिश की थी कि वह दलित समाज के हितों का कितना ख्याल रखती है। जिसके उपरांत जब द्रौपदी मुर्मू राष्ट्रपति बनीं, तो बीजेपी ने पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति होने का खूब प्रचार किया था। उस वक्त इन दोनों बातों को बीजेपी का चुनावी दांव बताया गया। अब राहुल से लेकर केजरीवाल तक ने उसी दांव को बीजेपी के विरुद्ध चल दिया है। जानकारों का यह भी बोलाना है कि विपक्षी नेता 'दलित-आदिवासी' नाव में सवार हो कर '2024' देख रहे हैं।
लोकतंत्र की आत्मा को ही निकाल दिया: ऑल इंडिया आदिवासी कांग्रेस के प्रमुख शिवाजीराव मोघे ने तो यहां तक कह दिया कि संसद भवन के उद्घाटन पर देश की पहली महिला आदिवासी राष्ट्रपति को निमंत्रित नहीं किया गया, देश के समस्त आदिवासियों का अपमान है। गवर्नमेंट के इस निर्णय के विरुद्ध आदिवासी कांग्रेस ने शुक्रवार को कई राज्यों में प्रदर्शन भी किया है। उन्होंने तकरीबन वे सभी बातें दोहरा दीं, जो द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति बनने पर BJP की तरफ से कही गई थीं। BJP ने अपने इस कदम से लोकतंत्र को अपमानित भी कर्त दिया है। मोघे ने साफतौर पर बोला है, मैं नहीं जानता कि क्या यह इसलिए हो रहा है, क्योंकि हम आदिवासी हैं। विपक्षी दलों ने भी अपने संयुक्त बयान में कहा, नए संसद भवन के उद्घाटन पर राष्ट्रपति को न बुलाकर मोदी सरकार ने संसद से लोकतंत्र की आत्मा को ही बहार निकाल दिया है।
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