मुंबई: ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में अपनी पार्टी की ओर से 16 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं। हालांकि इस बार प्रकाश अंबेडकर के साथ उनका गठबंधन नहीं हुआ है, फिर भी वे 'जय भीम और जय मीम' के नारे और एजेंडे के साथ चुनावी मैदान में उतरे हैं। AIMIM ने 16 में से 12 सीटों पर मुस्लिम समुदाय और 4 सुरक्षित सीटों पर दलित समुदाय के उम्मीदवारों पर भरोसा जताया है। ओवैसी दलित और मुस्लिम मतों को अपने पक्ष में करके महाराष्ट्र की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। हालाँकि, ये भीम-मीम एकता सिर्फ चुनावों के दौरान वोटों के लिए ही देखने को मिलती है, वरना जहाँ मीम आबादी अधिक है, वहां दलितों को कोई अधिकार नहीं है। जैसे जम्मू कश्मीर में 370 हटने तक दलितों को वोटिंग तक का अधिकार नहीं था, पढ़ने-लिखने के बावजूद सिर्फ सफाईकर्मी की नौकरी ही दी जाती थी। इसी प्रकार किसी भी मुस्लिम शिक्षण संस्थान जैसे अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी, या जामिया मिल्लिया में भी दलितों को आरक्षण नहीं है, ये केवल वोटों वाली एकता है, लेकिन राजनीतिक रूप से अनजान दलित इसे समझ नहीं पाते और ना ही चंद्रशेखर जैसे उनके नेता उन्हें समझने ेते हैं।
बहरहाल, AIMIM को महाराष्ट्र में टिकट के लिए 230 आवेदक मिले थे, लेकिन पार्टी ने सिर्फ 16 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे। इन 16 सीटों में से 12 सीटें ऐसी हैं, जहां मुस्लिम आबादी 25 प्रतिशत से अधिक है, जबकि 4 आरक्षित सीटों पर दलित उम्मीदवारों को मैदान में उतारा गया है। जिन सीटों से दलित उम्मीदवार खड़े किए गए हैं, वे सांगली के मिराज, अकोला के मुर्तिजापुर, मुंबई के कुर्ला, और नागपुर उत्तर हैं। मुस्लिम उम्मीदवारों को औरंगाबाद पूर्व, औरंगाबाद मध्य, भिवंडी पश्चिम, वर्सोवा, बायकुला, मुंब्रा, मानखुर्द-शिवाजी नगर, मालेगांव, धुले, सोलापुर, नांदेड़ दक्षिण और करंजा से टिकट दिया गया है।
औरंगाबाद पूर्व से पूर्व सांसद सैयद इम्तियाज जलील को AIMIM का उम्मीदवार बनाया गया है। इम्तियाज जलील ने कहा कि पिछली बार उन्हें दलित मतदाताओं का अच्छा समर्थन मिला था और इसी भरोसे पर AIMIM इस बार भी चुनाव लड़ रही है। उन्होंने उम्मीद जताई कि पार्टी के उम्मीदवार बेहतर प्रदर्शन करेंगे और पांच से सात सीटें जीत सकते हैं। ओवैसी ने अपनी रणनीति के तहत मॉब लिंचिंग, अल्पसंख्यक उत्पीड़न और हिजाब जैसे मुद्दों को भी उठाकर मुस्लिम समुदाय में अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश की है।
AIMIM की नजर 13 प्रतिशत दलित और 12 प्रतिशत मुस्लिम आबादी के गठजोड़ पर है, जो महाराष्ट्र में राजनीतिक समीकरण को बदलने की क्षमता रखता है। कई राजनीतिक दलों ने इस गठजोड़ को साधने की कोशिश की है, लेकिन अब तक सफलता नहीं मिल पाई है। ओवैसी और अंबेडकर ने 2019 में लोकसभा चुनाव में 'जय भीम और जय मीम' के नारे के साथ तालमेल किया था, लेकिन इस बार दोनों की राहें अलग हो गईं। इसके बावजूद, ओवैसी अपनी पार्टी के लिए दलित-मुस्लिम समीकरण बनाने का प्रयास कर रहे हैं ताकि 25 प्रतिशत वोट बैंक का समर्थन हासिल कर महाराष्ट्र की राजनीति में एक निर्णायक भूमिका निभा सकें।
AIMIM ने जिन 16 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे हैं, उनमें से पांच सीटें महाविकास अघाड़ी ने और आठ सीटें महायुति (भाजपा-शिवसेना) ने जीती थीं। AIMIM के पास फिलहाल धुले और मालेगांव सेंट्रल सीटें हैं। 2019 में मालेगांव सेंट्रल से AIMIM के विधायक मोहम्मद इस्माइल अब्दुल खालिक ने कांग्रेस को 38,519 वोटों के बड़े अंतर से हराया था। भिवंडी पश्चिम में AIMIM दूसरे स्थान पर रही थी, जबकि बायकुला में भी पार्टी कांग्रेस से आगे निकल गई थी।
2019 के चुनावों में AIMIM ने कांग्रेस और एनसीपी के कुछ उम्मीदवारों को कड़ी टक्कर दी थी। कुछ सीटों पर AIMIM और कांग्रेस के वोट मिलकर विजयी उम्मीदवारों को हराने के लिए पर्याप्त थे। उदाहरण के लिए, बायकुला सीट पर AIMIM और कांग्रेस के संयुक्त वोट, शिवसेना उम्मीदवार के वोट से अधिक थे। अब शिवसेना के विभाजन के बाद, कुछ सीटों के समीकरण बदल गए हैं। कुर्ला सीट पर भी शिवसेना के उम्मीदवार ने AIMIM और एनसीपी को हराया था, लेकिन दोनों पार्टियों के वोटों को जोड़ने पर यह अंतर काफी कम हो गया था। ओवैसी को उम्मीद है कि इस बार उनकी पार्टी बेहतर प्रदर्शन करेगी और महाराष्ट्र की राजनीति में किंगमेकर की भूमिका निभा सकेगी।
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