एक हिंदी फिल्म का डायलॉग है ''अगर आप किसी चीज को सच्चे दिल से चाहो तो पूरी कायनात उसे आपसे मिलाने में लग जाती है'' ये लाइन चरितार्थ हो रही है पाकिस्तान के युसूफ सलीम पर जो पाकिस्तान के पहले दृष्टिहीन जज बन गए हैं. मंगलवार को पद की शपथ लेने वाले युसूफ को पहले यह पद देने से इंकार किया जा चुका है मगर चीफ जस्टिस मियां साकिब निसार की दलीलों और कोशिशों के बाद लाहौर आखिरकार जज बना दिए गए.
इस मौके पर कोर्ट के चीफ जस्टिस मोहम्मद यावर अली ने उम्मी जताई कि सभी जज अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाएंगे. उन्होंने कहा कि कानून के तहत लोगों को बिना किसी भेदभाव और भय के न्याय देना चाहिए. युसूफ उन 21 सिविल जजों में शामिल हैं जिन्होंने लाहौर हाईकोर्ट में पद ग्रहण किया है.
युसूफ का सफर -
यूसुफ पंजाब सरकार में असिस्टेंट डायरेक्टर (लीगल) के पद पर कार्यरत थे.
उन्हें सिविल जज के पद के लिए कराई गई लिखित परीक्षा में चुना गया
इंटरव्यू के दौरान ही दृष्टिबाधित होने की वजह से उन्हें इस पद के लिए उपयुक्त नहीं माना गया
मामले को संज्ञान में लेते हुए चीफ जस्टिस ऑफ पाकिस्तान ने मामले में दखल दिया
उनके पिता चार्टेड अकाउंटेंट है
यूसुफ जन्म से ही दृष्टिहीन हैं.
उनकी चार में 2 बहनें भी अंधी है.
एक बहन साइमा सलीम 2007 में सिविल सेवा परीक्षा पास करने वाली पहली दृष्टिहीन है.
वो अब प्रधानमंत्री कार्यालय में डिप्टी सेक्रेटरी के पद पर कार्यरत हैं.
यूसुफ की दूसरी बहन लाहौर यूनिवर्सिटी में लेक्चरर हैं.
युसूफ का परिवार साबित करता है कि जस्बे के आगे सब को हारना पड़ता है.
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