लखनऊ: उत्तर प्रदेश के बरेली जिले में एक हैरान कर देने वाला मामला सामने आया है, जिसने शिक्षा विभाग और प्रशासन की लापरवाही पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। शुमायला खान नाम की एक महिला ने खुद को भारतीय नागरिक साबित करने के लिए फर्जी दस्तावेजों का सहारा लिया और 2015 में सरकारी स्कूल में सहायक अध्यापक की नौकरी हासिल कर ली। शुमायला ने नौ साल तक सरकारी वेतन लिया और इस दौरान किसी को भी उन पर शक नहीं हुआ।
मामला तब उजागर हुआ, जब एक शिकायत के आधार पर प्रशासन ने उनके दस्तावेजों की जांच शुरू की। जांच में सामने आया कि शुमायला ने रामपुर के एसडीएम कार्यालय से फर्जी निवास प्रमाण पत्र बनवाया था। तहसीलदार की रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया कि शुमायला वास्तव में पाकिस्तान की नागरिक हैं। इस खुलासे के बाद जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी ने 3 अक्टूबर, 2024 को उन्हें निलंबित करते हुए उनकी नियुक्ति को रद्द कर दिया।
शुमायला के खिलाफ फतेहगंज पश्चिमी के खंड शिक्षा अधिकारी भानु शंकर ने थाने में एफआईआर दर्ज करवाई। उन पर धोखाधड़ी, फर्जी दस्तावेज बनाने और सरकारी संसाधनों का दुरुपयोग करने के आरोप लगाए गए हैं। पुलिस अब उनकी गिरफ्तारी की तैयारी कर रही है। शुमायला खान का यह फर्जीवाड़ा कोई अलग घटना नहीं है। उनकी मां माहिरा अख्तर ने भी इसी तरह के फर्जी दस्तावेज बनाकर सरकारी नौकरी हासिल की थी। माहिरा अख्तर को 2021 में, रिटायरमेंट से ठीक दो दिन पहले, बर्खास्त कर दिया गया था। उनके खिलाफ भी फर्जी भारतीय नागरिकता दिखाने का मामला दर्ज है, जो फिलहाल हाईकोर्ट में लंबित है।
यह मामला सिर्फ एक व्यक्ति या परिवार का फर्जीवाड़ा नहीं है। यह इस बात की गंभीर चेतावनी है कि देश में घुसपैठिए न केवल प्रवेश कर रहे हैं, बल्कि फर्जी दस्तावेजों के जरिए सरकारी नौकरियां तक हासिल कर रहे हैं। सवाल यह है कि क्या इसीलिए "कागज़ नहीं दिखाएंगे" कहकर NRC का विरोध किया जाता है? क्योंकि घुसपैठिए फर्जी दस्तावेज़ों के जरिए सरकारी तंत्र में घुस चुके हैं? आखिर घुसपैठिए और उनके संरक्षणकर्ता क्या इसी का फायदा उठा रहे हैं?
वोट बैंक की राजनीति ने ऐसे मामलों को और बढ़ावा दिया है। फर्जी दस्तावेजों के दम पर सरकारी नौकरी पाना न केवल भ्रष्टाचार का सबूत है, बल्कि यह भी दिखाता है कि सरकारी तंत्र में सत्यापन प्रक्रिया कितनी कमजोर है। ऐसे मामलों में राजनेताओं की भूमिका भी सवालों के घेरे में है, जो घुसपैठियों को संरक्षण देकर अपनी राजनीति चमकाने में लगे रहते हैं।
शिक्षा विभाग ने अब दस्तावेजों की जांच प्रक्रिया को सख्त बनाने का निर्णय लिया है। लेकिन सवाल यह है कि जब तक ऐसे फर्जीवाड़े करने वालों और उन्हें बढ़ावा देने वालों पर कड़ी कार्रवाई नहीं होगी, क्या यह समस्या हल हो पाएगी? घुसपैठियों की पहचान और उन पर कार्रवाई के लिए कड़े कदम उठाने की जरूरत है, नहीं तो ऐसे मामले बार-बार सामने आते रहेंगे और यह देश की सुरक्षा और संसाधनों के लिए खतरा बनते रहेंगे।