इस्लामाबाद: पाकिस्तान के आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद काबुल में आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए पाक द्वारा सावधानीपूर्वक तैयार की गई रणनीति के तहत अफगानिस्तान में अपनी पकड़ मजबूत कर रहे हैं। ऐसा लगा रहा है कि ये अमेरिकी-तालिबान की शांति प्रक्रिया को लेकर बेख़ौफ़ है। इस बात की जानकारी इस संबंध में जानकारी रखने वाले लोगों ने दी है।
पाकिस्तान की इंटर सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI), लश्कर और जैश के आतंकवादियों को इस्लामिक स्टेट-खुरासान प्रांत (IKSP) में घुसपैठ कराने में मदद दे रही है। जो कि अफगान सुरक्षा बलों के प्रमुख अब्दुल्ला ओरकजई उर्फअसलम फारूकी और उसके टॉप कमांडरों की गिरफ्तारी के बाद से सवालों के दायरे में है। फारूकी को मौलवी मोहम्मद की जगह IKSP का नया चीफ बनाया गया है। काबुल में आतंकवाद विरोधी अधिकारियों का कहना है कि मौलवी के आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा से मजबूत रिश्ते हैं। पाकिस्तान के रावलपिंडी में तैयार ब्लूप्रिंट को लेकर दिल्ली में एक काउंटर टेरर अधिकारी ने कहा कि आईएसआई अधिकारियों ने अपने अभियान को आसान बनाने के लिए आर्थिक और रसद का एक सपोर्ट नेटवर्क तैयार किया है।
लश्कर और तालिबान समूहों के साथ हाल ही में कुनार प्रांत में तालिबान के शैडो गवर्नर ने एक मीटिंग बुलाई थी। इसमें आईएसआई के अधिकारी भी उपस्थित थे। यह खुलासा तब हुआ जब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् (UNSC) के प्रतिबंधों की निगरानी टीम ने 6,000-6,500 विदेशी लड़ाकों पर पड़ताल शुरू की। इन्हे अफगानिस्तान में शामिल किया गया था।
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