नईदिल्ली। 14 अगस्त 1947 की मध्यरात्रि, जिसे 15 अगस्त 1947 के तौर पर जाना जाता है। वह समय जब पं. जवाहर लाल नेहरू ने देश की जनता को संबोधित किया था। इस दौरान जानकारी दी गई थी कि वर्षों की गुलामी की जंजीरें अब टूट गई हैं और भारत स्वाधीन हुआ है। तब कई भारतीयों ने एक दूसरे को बधाईयां देने के साथ पं. जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व की सराहना की थी। इस दौरान महात्मा गांधी और कई महान क्रांतिकारियों को तो याद किया गया था लेकिन पं. जवाहर लाल नेहरू को विशेषतौर पर धन्यवाद दिया गया।
देश गदगद हो गया। भारत को प्रधानमंत्री के तौर पर पं. जवाहर लाल नेहरू का नेतृत्व मिला। पं. जवाहर लाल नेहरू एक कुशल नेता थे। हालांकि वे अध्ययन के लिए विदेश गए थे लेकिन इसके बाद भी उन्होंने भारत को गहराई से समझा था। ऐसी महान विभूति का जन्म 14 नवंबर 1889 को ब्रिटिश भारत में इलाहाबाद में हुआ था। वे कश्मीरी पंडित परिवार से थे। उनके पिता मोतीलाल नेहरू थे। मोतीलाल नेहरू एक धनी बैरिस्टर थे। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के दो बार अध्यक्ष चुने गए।
उनकी माता स्वरूपरानी थुस्सू भी कश्मीरी ब्राह्मण परिवार से थीं। हालांकि मोतीलाल नेहरू ने दो विवाह किए थे। उनकी पहली पत्नी की मृत्यु प्रसाव के दौरान हो गई थी। जवाहर लाल नेहरू के परिवार में उनकी दो बहनें थीं। वे अपने परिवार में सबसे बड़े थे। उनकी स्कूली शिक्षा हैरो से व महाविद्यालय की शिक्षा ट्रिनिटी महाविद्यालय, लंदन से हुई थी। इसके बाद वे आगे की शिक्षा उन्होंने कैंब्रिज विश्व विद्यालय से प्राप्त की। भारत आने पर वर्ष 1912 में उन्होंने वकालत प्रारंभ कर दी।
इसके कुछ वर्षों में वर्ष 1916 में उनका विवाह कमला नेहरू से हुआ। देशभर में स्वाधीनता प्राप्ति का अलख जगाया जा रहा था। ऐसे में वे 1917 में होमरूल लीग से जुड़ गए। बाद में उनकी भेंट महात्मा गांधी से हुई। वे महात्मा गांधी से बेहद प्रभावित हुए। पं. नेहरू ने खादी को अपनाया और गांधी टोपी पहनी। वे कांग्रेस और महात्मा गांधी के आंदोलनों में सक्रियता से भाग लेने लगे। जब भारत स्वाधीन हुआ तो भावी प्रधानमंत्री के लिए कांग्रेस में मतदान हुआ। जिसमे सरदार वल्लभ भाई पटेल को सबसे अधिक मत मिले। इसके बाद आचार्य कृपलानी को मत मिले लेकिन महात्मा गांधी के कहने पर सरदार पटेल और आचार्य कृपलानी ने अपना नाम वापस ले लिया और पं. जवाहर लाल नेहरू को प्रधानमंत्री बना दिया गया।
पं. नेहरू बच्चों से बेहद लगाव रखते थे। ऐसे में उनके जन्मदिवस को बाल दिवस के तौर पर मनाया जाने लगा। प्रतिवर्ष उनकी स्मृति में उनके जन्मदिवस पर बाल दिवस मनाया जाता है। कई स्थानों पर तो बाल मेले तक लगते हैं। उन्होंने चीन से भारत के संबंध सुधारने के प्रयास किए लेकिन वर्ष 1962 में चीन ने भारत पर आक्रमण कर दिया था। पं. नेहरू इस बात से बेहद दुखी थे।
इसे बाद भी वे देश हित में कार्य करते रहे। करीब 2 वर्ष बाद 27 मई 1964 को उनकी तबियत खराब हो गई। उन्हें दिल का दौरा पड़ा। उन्हें बचाने के प्रयास किए गए लेकिन वे भारतवासियों को सदा सदा के लिए अलविदा कह गए।
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