चरमराती शिक्षा व्यवस्था, पीसतेे अभिभावक

चरमराती शिक्षा व्यवस्था, पीसतेे अभिभावक
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इन दिनों देश की राजनीति में एक अलग ही माहौल नज़र आ रहा है। सभी पार्टियां एक दूसरे के नेताओं पर फर्जी डिग्रियों को लेकर हमला बोलने लगी हैं। भारतीय जनता पार्टी के नेता आम आदमी पार्टी के नेता जितेंद्र सिंह तोमर पर फर्जी डिग्री रखने के मामले में आरोप लगाकर हमला कर रहे हैं तो आम आदमी पार्टी को भी भाजपा पर अंगुली दिखाने का मौका मिल ही गया है। दरअसल हाल ही में यह बात सामने आई है कि महाराष्ट्र में भी सत्तासीन भाजपानीत गठबंधन सरकार में कई नेता फर्जी डिग्रीधारी हैं। हाल ही में महाराष्ट्र के जल आपूर्ति और स्वच्छता मंत्री बबनराव लोनिकर और इनके बाद महाराष्ट्र के ही शिक्षामंत्री विनोद तावड़े की डिग्रियां फर्जी होने की बातें सामने आ रही हैं। मामले में कहा गया है कि जब भारतीय जनता पार्टी के ही नेताओं की शैक्षणिक योग्यताऐं फर्जीवाड़े के दायरे में है तो वे दूसरे को क्यों आईना दिखाने में लगे हैं। मगर इस पूरे मामले ने देश की शिक्षा व्यवस्था की पोल खोलकर रख दी है। हालात ये हैं कि अभिभावकों को वर्तमान में अपने बच्चों को प्ले स्कूल में दाखिल करवाना पड़ता है। दरअसल शिक्षा व्यवस्था इस कदर चरमरा गई है कि अभिभावक अपने बच्चों को प्रारंभ से ही अच्छे और महंगे निजी स्कूलों में दाखिल करवाने के लिए बाध्य हैं।

दरअसल सरकारी शिक्षण संस्थान लगातार दम तोड़ रहे हैं। जहां गांवों में लगने वाले प्राथमिक स्कूलों में सुविधाओं का अभाव है वहीं अधिकांश समय आज भी सुदूर के कई सरकारी स्कूलों में समय से पहले ही ताला लग जाता है। ऐसे में बच्चे पढ़ें तो आखिर कैसे पढ़ें मजबूरन उन्हें निजी स्कूलों की राह पकड़नी पड़ती हैं। निजी स्कूलों में दाखिले के पहले अपने बच्चों को प्ले स्कूल में दाखिल करवाने के लिए वर्तमान में पालक अर्थ प्रबंधन की जद्दोजहद में लगे रहते हैं। इसके बाद फिर स्कूली शिक्षा को लेकर अभिभावक अपने बच्चों को महंगे से महंगे स्कूल में दाखिल करवाने की होड़ में लग जाते हैं। शिक्षा व्यवस्था की बदहाली और सीबीएसई व मिशनरी स्कूलों में बच्चों के अध्यापन को लेकर समाज में बढ़ते दबाव के कारण अभिभावकों को ऐसा करने पर मजबूर होना पड़ रहा है। बावजूद इसके अपने बच्चों को महंगे कोचिंग संस्थान में भेजने के लिए अभिभावक मानसिकरूप से बाध्य हैं। इसके बाद भी बच्चों के ज्ञान और कौशल में पैनापन नहीं आने पर अभिभावकों को यह बात जीवनभर सालती रहती है कि इतना अर्थ खर्च कर देने के बाद भी उनके बच्चों को उपयुक्त शिक्षा नहीं मिल सकी।

काॅलेज में डिग्री ले लेने के बाद भी उनके बच्चों को नौकरियों के लिए यहां वहां भटकना पड़ता है। यहां आकर तो अनौपचारिक तौर पर वैध और अवैध उपाधियों जैसी कोई बात नज़र ही नहीं आती। आखिर अच्छी से अच्छी प्रोफेशनल डिग्री लेने के बाद भी उनके बच्चे नौकरियों के लिए दफ्तरदर दफ्तर चप्पलें घिसते रह जाते हैं। जिंदगी की रफ्तार से कदम ताल मिलाने के एवज में वे खुद को पूरा घिस लेते हैं लेकिन बावजूद इसके उन्हें उनके शिक्षा और प्रतिभा के अनुकूल वह स्थान नहीं मिल पाता जिसके उन्हें और उनके अभिभावकों को उम्मीद थी। इन सबके बाद भी इस तरह के शिक्षण संस्थान धड़ल्ले से खुलते जा रहे हैं।

कुछ तो तीन साल की डिग्री को ही एक साल में कर देते हैं। और कुछ का तो दावा होता है, आप तो बस एडमिशन फाॅर्म भर दीजिए, क्लासरूम से लेकर एक्ज़ाम तक की सारी टेंशन हमारी हो गई। यह तो अच्छा हुआ अब अभिभावकों को अपने बच्चों की पढ़ाई के लिए अतिरिक्त बादमा घिसने की जरूरत नहीं होती लेकिन इन सभी के बीच स्कील डेवलपमेंट की बात पीछे छूट जाती है और नतीजा इंडस्ट्री लेबल पर स्कील्ड लेबर न मिल पाने के तौर पर सामने आता है।

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