नई दिल्ली : 2019 लोकसभा चुनाव का शंखनाद हो चुका है। उम्मीदवारों की घोषणाएं शुरू हो चुकी हैं। पूरे देश के लिए रणनीति और जोड़तोड़ आरम्भ हो गया है। किन्तु हमेशा की तरह इस बार भी सबसे अधिक सुर्खियां यूपी बटोर रहा है। इसलिए नहीं कि यहां भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को सपा-बसपा के गठबंधन से कड़ी टक्कर मिलने वाली है। न ही इसलिए कि यूपी पीएम नरेंद्र मोदी का वाटरलू साबित हो सकता है।
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बल्कि यहां पार्टियों में यह होड़ लगी हुई है कि वो खुद को बीजेपी का सबसे बड़ा विरोधी साबित करें, भले ही ऐसा करने में उन्हें आपस में तू-तू, मैं-मैं क्यों न करना पड़े । एक हफ्ते में कांग्रेस, सपा और बसपा के बड़े नेताओं के बयानों और रणनीतियों पर अगर निगाह घुमाएं तो दिलचस्प तस्वीर सामने आती है। कांग्रेस पार्टी यह दिखाने का प्रयास कर रही है कि वह अपने दम पर चुनाव लड़ अवश्य रही है, किन्तु उसकी सद्भावना सपा-बसपा-आरएलडी के गठबंधन के साथ ही है। इसलिए पार्टी ने नरम रुख अपनाते हुए ऐलान किया है कि उन सात सीटों पर उम्मीदवार नहीं उतारेगी, जहां से गठबंधन के बड़े नेता चुनाव लड़ेंगे। लेकिन इससे भी बात नहीं बनी मायावती ने उनसे साफ़ कह दिया है कि बसपा, कांग्रेस से किसी तरह का तालमेल नहीं रखेगी।
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यूपी में अलग थलग पड़ने के बाद कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी से दिल्ली में गठबंधन ना करके अपने ही पैरो पर कुल्हाड़ी मार ली है। वहीं पश्चिम बंगाल में वाम मोर्चे ने कांग्रेस के साथ गठबंधन करने से साफ़ मना कर दिया है। इसके साथ ही बिहार में भी कांग्रेस की फजीहत होते दिखाई दे रही है। यहाँ लालू की अध्यक्षता वाले राजद ने कांग्रेस को अधिक सीटें देने से इंकार कर दिया है, कांग्रेस को 11 सीटें देने की बात सामने आई है। मतलब कुल मिलकर बात ये है कि कांग्रेस की नाव बीच मझधार में है और उसके खेवनहार एक एक करके अलग होते जा रहे हैं।
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