पुत्र-फल देने वाला व्रत हैं परशुराम द्वादशी का

पुत्र-फल देने वाला व्रत हैं परशुराम द्वादशी का
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वैशाख माह की शुक्ल पक्ष की द्वादशी को परशुराम द्वादशी के नाम से भी जाना जाता हैं. इस दिन भगवान परशुराम की पूजा-अर्चना करने के साथ व्रत रखने से धार्मिक पुत्र धन की प्राप्ति होती हैं. पुराणों के अनुसार यह वह दिन है जब भगवान शिव ने स्वयं उन्हें एक दिव्य फरसा, भार्गवस्त्र प्रदान किया था और धरती पर फैले अधर्म को नष्ट कर सबका कल्याण करने का आशीर्वाद दिया था .

ऐसा माना जाता हैं कि जब धरती पर क्षत्रिय राजाओ का  अत्याचार बढ़ गया था तो धरती माता ने भगवान विष्णु से मदद मांगी थी और उसके फलस्वरूप अक्षय तृतीया के दिन ऋषि जमदग्नी और रेणुका के पुत्र के रूप में धरती पर जन्म लिया था. यह भगवान विष्णु का छठे अवतार के रूप में भी जाना जाता हैं. भगवान परशुराम ने  21  बार क्षत्रिय राजाओं का वध कर अधर्म का संहार किया और उसके बाद वो महेन्द्रगिरि पर्वत पर जाकर तपस्या करने लगे.उन्हें न्याय का देवता भी कहा जाता हैं.  महेन्द्रगिरि पर्वत को भगवान परशुराम का निवास स्थान भी कहा जाता हैं.

ऐसी मान्यता हैं कि इस दिन व्रत करने के लिए, प्रातःकाल में स्नान कर भगवान परशुराम और विष्णु की पूरी भक्ति भावना से पूजा-अर्चना करनी चाहिए और मन से लाभ,क्रोध जैसे विकारों को त्याग कर पूर्ण शुद्ध होकर व्रत करना चाहिए. यह व्रत द्वादशी की प्रातः से शुरु  होता हैं और दूसरे दिन त्रयोदशी तक चलता हैं .

 

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