एक समय ऐसा था जब पारसी समाज बहुत बड़ा हुआ करता था लेकिन धीरे-धीरे समय परिवर्तन के साथ-साथ कुछ लोगों इस समाज से नाता तोड़ लिया वहीं कुछ ऐसे भी लोग थे जिन्होंने अपने समाज की नींव कायम रखी थी. आज पारसी समाज का नववर्ष है और इस मौके को पारसी समाज के लोग बहुत धूमधाम से मनाते हैं. हम आपको पारसी समाज से जुड़ी कुछ खास बातों के बारे में बता रहे हैं-
इतिहास और परंपरा
ईरान में साल 1380 ईस्वी के पूर्व धर्म-परिवर्तन की लहर के दौरान कई पारसियों ने अपना धर्म परिवर्तन कर लिया था और कुछ ऐसे लोग जिन्हे ये मंजूर नहीं था वो देश छोड़कर भारत आ गए थे. ऐसे लोगों ने ही अपने धर्म को आज तक सहेज कर रखा हुआ है और अपनी संस्कृति को बरकरार रखा है. पारसी लोग धर्म के विरुद्ध जाकर कभी कोई कार्य नहीं करते हैं और अगर उनके समाज की कोई लड़की अलग धर्म में शादी कर लेती है तो उसे तो समाज में रखा जा सकता है लेकिन उसके पति और बच्चों को समाज में शामिल नहीं किया जाता है. ठीक इसी तरह लड़को के साथ भी होता है.
क्या है पारसी धर्म
पारसी धर्म ईरान के प्राचीन धर्मो में से एक है जो ज़न्द अवेस्ता नाम के एक धर्मग्रन्थ पर आधारित है. इस धर्म के संस्थापक महात्मा ज़रथुष्ट्र को कहा जाता है. पारसी धर्म में तीन प्रमुख शिक्षा होती है हुमत, हुख्त आैर हुवर्श्त जिन्हें संस्कृत में सुमत, सूक्त आैर सुवर्तन कहा जाता है. पारसी समाज के लोग अहुरा मज़्दा या होरमज़्द को अपना ईश्वर मानते हैं.
पारसी समाज में वैसे तो मुख्य रूप से सात पर्व होते है लेकिन इनमे से सबसे अहम् होता है नौरोज़: नौरोज़ या नवरोज़ जिसे ईरानी नववर्ष भी कहा जाता है. इस पर्व को फ़ारसी का नया साल भी कहा जाता है. इस त्यौहार को खासतौर से ईरानी लोगों द्वारा मनाया जाता है. इस दिन घर में आए मेहमानों पर गुलाबजल का छिड़काव कर उनका स्वागत किया जाता है. इसके साथ ही पारसी लोगों द्वारा चैरिटी के लिए दान भी किया जाता है. पारसी समाज ले लोग नौरोज़ पर प्रेयर कर खुशहाली की कामना करते हैं और वो नए कपड़े पहनकर इस पर्व को सेलिब्रेट करते हैं. घरों के बाहर रंगोली बनाकर सजाया जाता हैं.
पारसी न्यू ईयर पर गुजरात और महाराष्ट्र में क्षेत्रीय अवकाश भी रहता है. इस त्यौहार पर स्वादिष्ट व्यंजन और खासतौर से मिठाई का ज्यादा महत्व होता है. मूंग दाल, धंसक, झींगा, पुलाओ, साली बोटी जैसे कुछ पकवान इस त्यौहार पर खासतौर से मनाए जाते हैं.
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