नई दिल्ली: केंद्रीय गृह मंत्री और भाजपा नेता अमित शाह ने 8 सितंबर को पारसी समुदाय की प्रशंसा करते हुए कहा कि उन्होंने 'अल्पसंख्यक' अधिकारों की मांग किए बिना हर क्षेत्र में देश के लिए योगदान दिया है। शाह ने यहां एक मीडिया कार्यक्रम में बोलते हुए कहा, "ऐसे कई लोग हैं जो अल्पसंख्यकों के अधिकारों के लिए लड़ते हैं। मैं उन्हें बताना चाहता हूं कि अगर अल्पसंख्यकों में कोई अल्पसंख्यक है, तो वे पारसी हैं। उन्होंने कभी अपने अधिकारों के लिए विरोध नहीं किया, बल्कि अपने कर्तव्यों को पूरा करने के लिए जिया। उन्होंने अपने लिए कुछ नहीं मांगा; उन्होंने इस देश के लिए योगदान दिया।"
माइनॉरिटी में भी अगर कोई माइनॉरिटी है, तो पारसी है। माइनॉरिटी राइट्स के लिए झगड़ा करने वालों को पारसी समुदाय से सीखना चाहिए, जो अपने कर्तव्यों के लिए ही जीवन जीते हैं और जिन्होंने कभी कोई माँग किये बिना हर क्षेत्र में योगदान दिया है।
— Amit Shah (@AmitShah) September 8, 2024
If there is a minority within minorities, it… pic.twitter.com/w5i7tH285m
भारत में पारसियों के योगदान का विवरण देते हुए उन्होंने कहा, "पारसी हर क्षेत्र में हैं, चाहे वह कानून हो, उद्योग हो, फिनटेक का विकास हो, आईटी क्षेत्र हो, परमाणु क्षेत्र हो या बांग्लादेश (युद्ध) में जीत हो, आप पाएंगे कि एक पारसी चुपचाप खड़ा है।" उन्होंने कहा, "बिना कुछ मांगे उन्होंने (पारसियों ने) देश के लिए योगदान दिया और वे देते रहे। मैं भगवान से प्रार्थना करता हूं कि अल्पसंख्यक भी आपके जैसे हों।" उन्होंने यह भी कहा कि जब पारसी लोग गुजरात में शरण लेने आए थे, तो स्थानीय राजा ने उनसे कहा था कि उनके राज्य में पहले से ही बहुत ज़्यादा आबादी है और उनसे पूछा था कि वे वहां कैसे रह सकते हैं। तब पारसियों ने कहा था कि जैसे चीनी दूध में घुल जाती है, वैसे ही वे भी समाज में घुल-मिल जाएंगे।
दरअसल, भारत में अल्पसंख्यकों का मुद्दा अक्सर उठता रहता है, राजनेता इसे वोट बैंक बनाने के लिए जमकर इस्तेमाल करते हैं। आरोप लगाए जाते हैं कि भारत में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार होता है, खासकर मुस्लिमों पर, जो भारत की दूसरी सबसे बड़ी आबादी है, लगभग 30 करोड़ से अधिक।इस तरह से मुस्लिमों को भड़काकर राजनेताओं द्वारा अपने पाले में बांधकर रखा जाता है, ताकि उनके वोट एकमुश्त मिलते रहें और मिलते भी हैं। इसीलिए उनकी हर डिमांड भी पूरी की जाती है, जो लगातार बढ़ रही है। आप देखेंगे तो पाएंगे कि भारत में मुस्लिमों के लिए अलग से जितने कानून और नियम बनाए गए उतने किसी और धर्म के लिए नहीं हैं, फिर चाहे वो कितने ही अल्पसंख्यक हों, क्योंकि वो वोट बैंक नहीं हैं। मुस्लिम समुदाय के लिए वक्फ बोर्ड, पूजा स्थल कानून, पर्सनल लॉ बोर्ड, अनुच्छेद 370, जैसे कई विवादित कानून बना दिए गए हैं, जो कुछ हद तक देश के लिए भी घातक हैं, इसके अलावा उन्हें हज पर सब्सिडी, अल्पसंख्यक मंत्रालय, आरक्षण के जरिए भी तमाम लाभ दिए जाते हैं।
2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में लगभग 57000 पारसी रहते हैं, लेकिन उनकी कोई स्पेशल डिमांड नहीं और ऐसा भी नहीं है कि कम संख्या होने के कारण वो पनप नहीं पा रहे, या बहुसंख्यक उन्हें आगे बढ़ने नहीं दे रहे। टाटा समूह के संस्थापक जमशेदजी नसरवानजी टाटा, गोदरेज के संस्थापक आर्देशिर गोदरेज, वाडिया उद्योग के संस्थापक लवजी नुसरवानजी वाडिया, और सीरम इंस्टीट्यूट के सायरस पूनावाला. रतन टाटा, होमी जहांगीर भाभा जैसे दिग्गज पारसी हैं। स्वतंत्रता सेनानियों में मैडम भीखाजी कामा, दादाभाई नैरोजी भी पारसी थे। साइरस मिस्त्री, बोमन ईरानी जैसे दिग्गज भी पारसी हैं, जो भारत में काफी फले-फूले हैं। ये दर्शाता है कि भारत में सभी के लिए समान अवसर मौजूद हैं, जिसका आबादी से कोई ताल्लुक नहीं, बस सबकुछ आपके कर्मों पर निभर है। बिना कुछ मांगे भी पारसी इतना आगे बढ़ गए, जबकि वे तो अल्पसंख्यकों में भी सबसे बड़े अल्पसंख्यक हैं।
पारसी समुदाय, सिख समुदाय, यहूदी समुदाय, बौद्ध समुदाय, जैन समुदाय, ईसाई समुदाय की तादाद भारत में बेहद कम है, लेकिन वो लोग बिना किसी डिमांड के देश की उन्नति में अपना योगदान देते रहते हैं। इन्होने ना आज तक आरक्षण की मांग की है, ना ही किसी विशेष सुविधा की, ना देश में हिस्सा माँगा है, ना संसद में अपना नेता। पारसियों ने सही ही कहा था, वे भारतीय समाज में उसी तरह घुलमिल गए हैं, जैसे दूध में चीनी। आज तक पारसियों द्वारा किसी समुदाय पर एक पत्थर चलाने की खबर नहीं आई है। इनका जो देश था, फारस (पर्शिया), वो इस्लामी आक्रमण के बाद अब ईरान बन चुका है और पारसियों को वहाँ से भागकर भारत में शरण लेनी पड़ी थी, तब से ये समुदाय भारत को ही अपनी कर्मभूमि मानता है।
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