पर्यूषण महापर्व का भी अपने आप में एक अलग महत्व है जो भादो कृष्ण त्रयोदशी से प्रारंभ होकर भादो शुक्ल पंचमी यानी ऋषि पंचमी तक चलता है. यह पर्व श्वेतांबरों में चलता है और ऋषि पंचमी से पूर्णमासी तक दिगंबरों में मनाया जाता है. इस पर्व में त्याग और तप है जिसे सभी श्रद्धा पूर्वक करते हैं. अलग-अलग मनाने के कारण ये पर्व कुल 8 दिनों तक चलता है. इस बार का पर्यूषण महापर्व जैन स्थानकवासी, मंदिर मार्गियों व तेरापंथ का एक साथ प्रारंभ हो रहा है. इसी के साथ 13 सिंतबर को संवत्सरी महापर्व को भी बड़े ही उल्लास के साथ मनाया जाएगा. जानते हैं इसका महत्व -
यह पर्व जैन धर्म का बहुत ही अनूठा पाव होता है जिसमें वो अपनी साधना, धर्मावलंबी जप, तप, व्रत, पूजा सभी श्रद्धा और ईमानदारी से करते हैं. वहीं आचार्य सम्राट पूज्य श्री आत्मा राम जी महाराज के अनुसार पर्यूषण शब्द का अर्थ अधिक समीप में निवास करना होता है यानी अपनी आत्मा के समीप निवास करना. इस 8 दिन के पर्व के बाद महापर्व संवत्सरी आता है जिसे क्षमायाचना पर्व भी कहते हैं. जिस दिन सभी अपने बड़ों से और अपने रिश्तेदाओं से क्षमायाचना करते हैं.
पर्युषण पर्व की श्रृंखला प्राचीन है कल्पसूत्र जैनागम में स्पष्ट उल्लेख है- आषाढ़ चातुर्मास के आरंभ से एक मास और 20 रात्रि व्यतीत होने और 70 दिन शेष रहने पर भगवान महावीर स्वामी ने पर्युषण पर्व की आराधना की थी. यह जैन धर्म निवृति प्रधान धर्म है जिसमें सभी लोग जप, तप ध्यान स्वाध्याय आदि में लीं रखते हैं और त्याग-वैराग्य पर बल दिया जाता है.
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