पर्युषण पर्व : क्रोध-लोभ और मोह से मुक्ति पाने का मार्ग है पर्युषण

पर्युषण पर्व : क्रोध-लोभ और मोह से मुक्ति पाने का मार्ग है पर्युषण
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जैन धर्म में श्वेतांबर और दिगंबर समाज भाद्रपद महीने में पर्युषण पर्व मनाया जाता है. ये पर्व शुरू हो चुका है जो उनके लिए बेहद ही खास होता है. जैन धर्म में इस पर्व का बेहद महत्व होता है. जैन धर्म में के कुछ महत्वपूर्ण धार्मिक त्योहार में पर्युषण को बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है. दस दिनों तक लगातार चलने के कारण इसे दशलक्षण पर्व कहा जाता है. इस दौरान उत्तम क्षमा, उत्तम मार्दव, उत्तम आर्जव, उत्तम शौच, उत्तम सत्य, उत्तम संयम, उत्तम तप, उत्तम त्याग, उत्तम अकिंचन्य, उत्तम ब्रह्मचर्य के माध्यम से जैन धर्म के अनुयायी आत्मसाधना करते हैं. 

इन दस दिनों में जैन धर्म के लोगों को कई तरह के नियम पालन करने होते हैं. या यूं कहें यह मन पर पड़ी विचारों की धूल साफ करने का पर्व है. इस दौरान वो अपने मन के बसे मोह माया और मेल को दूर करते हैं. इस त्योहार को मनाने के रूप में लोग अगले 8-10 दिन तक ईश्वर के नाम पर उपवास करेंगे और पूजा अर्चना करेंगे. जैन धर्मावलंबी इस पर्व के दौरान मन के सभी विकारों- क्रोध, लोभ, मोह, ईर्ष्या और वैमनस्य से मुक्ति पाने का मार्ग तलाश करते हैं. साथ ही इन विकारों पर विजय पाकर शांति और पवित्रता की तरफ खुद को ले जाने का उपाय ढूंढते हैं.

श्वेतांबर समाज 8 दिन तक पर्युषण पर्व मनाते हैं जिसे ‘अष्टान्हिका’ कहते हैं जबकि दिगंबर 10 दिन तक मनाते हैं जिसे वे ‘दसलक्षण’ कहते हैं.  इस त्योहार की प्रमुख बातें जैन धर्म के 5 सिद्धांतों पर निहित हैं. ये सिद्धांत इस प्रकार हैं- अहिंसा (किसी को कष्ट न पहुंचाना), सत्य, अस्तेय (चोरी न करना), ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह (जरूरत से ज्यादा धन संचय न करना).

आज से शुरू हुए पर्युषण, खास है इसका महत्त्व

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