नई दिल्ली: कोरोना संक्रमित मरीजों के उपचार के लिए केंद्र सरकार ने क्लीनिकल दिशा-निर्देशों में संशोधन किया है. इसमें बताई गई गाइडलाइन के मुताबिक, डॉक्टर्स को रोगियों को स्टेरॉयड देने से बचना चाहिए तथा निरंतर खांसी होने पर उन्हें ट्यूबरक्लोसिस का टेस्ट कराने की सलाह देनी चाहिए. यह दिशा-निर्देश टास्क फोर्स चीफ के दूसरी लहर के चलते दवाओं के ओवर डोज़ पर खेद व्यक्त करने के कुछ दिन पश्चात् जारी किए गए है. संशोधित दिशा-निर्देशों के अनुसार, स्टेरॉयड म्यूकरमाइकोसिस मतलब ब्लैक फंगस जैसे भयावह सेकेंडरी इंफेक्शन को बढ़ावा दे सकते हैं. वक़्त से पहले स्टेरॉयड का उपयोग या लंबे वक़्त तक स्टेरॉयड का हाई डोज देने की गलती इस जोखिम को बढ़ा सकती है. स्टेरॉयड सिर्फ आवश्यकता पड़ने पर हल्के, मध्यम या गंभीर लक्षणों के आधार पर ही दिए जाने चाहिए.
इसके अतिरिक्त, सांस में समस्या के साथ अगर किसी मरीज का ऑक्सीजन सैचुरेशन 90-93 प्रतिशत के बीच है तो उन्हें हॉस्पिटल में एडमिट किया जा सकता है. और ऐसे मामलों को मॉडरेट मामले के रूप में देखा जा सकता है. कुछ रोगियों को आवश्यकता पड़ने पर ऑक्सीजन सपोर्ट पर भी रखा जा सकता है.
रेस्पिरेटरी रेट प्रति 30 मिनट से अधिक, सांस लेने में समस्या या रूम एयर में ऑक्सीजन सैचुरेशन 90 प्रतिशत से कम होने पर ही कोई मामला गंभीर समझा जाना चाहिए. ऐसी समस्या होने पर रोगी को ICU में भर्ती करना होगा, क्योंकि उन्हें रेस्पिरेटरी सपोर्ट की आवश्यकता होगी. नॉन इनवेसिव वेंटीलेशन (NIV), हेलमेट या फेस मास्क इंटरफेस की सुविधा उपलब्धता पर निर्भर होगी. सांस में समस्या वाले रोगियों को इसमें प्राथमिकता दी जा सकती है.
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