बैंकाक: थाईलैंड की प्रधानमंत्री श्रेथा थाविसिन ने शांति को बढ़ावा देने वाले हिंदू मूल्यों पर प्रकाश डाला और कहा कि अशांति से जूझ रही दुनिया को अहिंसा, सत्य, सहिष्णुता और सद्भाव के हिंदू मूल्यों से प्रेरणा लेनी चाहिए, तभी दुनिया में शांति स्थापित होगी। दुनिया में हिंदुओं की पहचान एक प्रगतिशील और प्रतिभाशाली समाज के रूप में स्थापित करने के उद्देश्य से आज यहां तीसरी विश्व हिंदू कांग्रेस का उद्घाटन किया गया।
रिपोर्ट के अनुसार, उद्घाटन सत्र में मेजबान देश के प्रधानमंत्री थाविसिन को हिस्सा लेना था, लेकिन किन्हीं कारणों से वह नहीं आ सके। बैठक में थाई प्रधानमंत्री का संदेश पढ़ा गया। उन्होंने कहा कि हिंदू धर्म के सिद्धांतों और मूल्यों पर आयोजित विश्व हिंदू कांग्रेस की मेजबानी करना थाईलैंड के लिए सम्मान की बात है। वेद शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के लिए संश्लेषण और संतुलन के प्रमुख सिद्धांतों की कल्पना करते हैं। शांति की अवधारणा इन्हीं सिद्धांतों पर स्थापित है।
'धर्म की विजय' के उद्घोष के साथ प्रख्यात संत माता अमृतानंदमयी, भारत सेवाश्रम संघ के स्वामी पूर्णानंद, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहनराव भागवत, सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले, विश्व हिंदू परिषद के महासचिव मिलिंद परांडे और कार्यक्रम के संस्थापक-संचालक स्वामी विज्ञानानंद ने दीप प्रज्जवलित किया। विश्व हिंदू कांग्रेस में दुनिया के 61 देशों से आमंत्रित 2200 से अधिक प्रतिनिधि एकत्र हुए जिन्होंने शिक्षा, अर्थव्यवस्था, शिक्षा, अनुसंधान और विकास, मीडिया और राजनीति के क्षेत्र में उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल कीं।
इनमें करीब 25 देशों के सांसद और मंत्री शामिल हैं। थाईलैंड में भारतीय समुदाय के लगभग 10 लाख लोग रहते हैं जिनका देश के व्यापार और आर्थिक विकास में योगदान उल्लेखनीय है।इस बीच, विदेश मंत्री ईएएम जयशंकर ने हाल ही में कहा कि थाईलैंड के साथ भारत के रक्षा और सुरक्षा संबंध 2014 के बाद बढ़े हैं। उन्होंने कहा कि थाईलैंड सरकार ने भी यही भावना दिखाई है। थाईलैंड में भारतीय प्रवासियों को संबोधित करते हुए जयशंकर ने कहा कि भारत की पूर्व की ओर देखो नीति है जबकि थाईलैंड की पश्चिम की ओर देखो नीति है। उन्होंने 2014 में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद भारत-थाईलैंड संबंधों के संदर्भ में हुए बदलावों पर प्रकाश डाला।
भारतीय समुदाय के साथ बातचीत करते हुए जयशंकर ने कहा कि, ''हम आसियान देशों के साथ जुड़ते हैं। तो, हमारे लिए, यह सिर्फ एक रिश्ता नहीं है। यह ऐसा रिश्ता भी नहीं है जो, जैसा कि मैंने कहा, 1947 में, आधुनिक रूप में शुरू हुआ था। बेशक, यह एक ऐसा रिश्ता है जो इतिहास में दर्ज है, लेकिन यह एक ऐसा रिश्ता है जो भारत में सुधार और बदलाव से जुड़ा है। इसलिए, जिस अवधि की हम बात कर रहे हैं, विशेष रूप से पिछले 25 वर्षों में, यह वह समय है जब यह संबंध बहुत अधिक विकसित हुआ है।''
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