रायपुर: छत्तीसगढ़ में प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (PMGKAY) और राज्य सरकार की अन्नपूर्णा योजना के तहत गरीबों को वितरित किए जा रहे सरकारी चावल के दुरुपयोग के आरोप सामने आए हैं। रिपोर्ट्स के अनुसार, कुछ ईसाई मिशनरी इस चावल का उपयोग धार्मिक रूप से मतांतरण के लिए कर रही हैं।
मिशनरियाँ गरीब परिवारों से "एक मुट्ठी चावल योजना" के तहत अनाज इकट्ठा करती हैं, जिसमें प्रत्येक परिवार का सदस्य प्रतिदिन एक मुट्ठी चावल दान करता है। यह चावल बड़े पैमाने पर इकट्ठा कर खुले बाजार में 25-30 रुपये प्रति किलो बेचा जाता है, जिससे मिशनरियों को अनुमानित 100 करोड़ रुपये का वार्षिक लाभ हो रहा है। इस दुरुपयोग का कारण 2019 में लागू विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम (एफसीआरए) है, जिसके चलते मिशनरियों को विदेशों से धन प्राप्त करने में कठिनाई हो रही थी। इसके बाद उन्होंने चावल इकट्ठा करने का यह तरीका अपनाया, जिससे वे अपने धार्मिक प्रचारकों को वेतन देने के लिए धन जुटा सकते थे।
छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले में इस दुरुपयोग की स्थिति अधिक गंभीर है, जहां ईसाई आबादी तेजी से बढ़ रही है। 2011 में यहां ईसाई आबादी 22.5% थी, जो अब लगभग 35% तक पहुंच गई है। मिशनरियाँ चंगाई सभाओं के दौरान गरीबों को चावल देती हैं और बदले में उन्हें मतांतरण के लिए प्रेरित करती हैं। बजरंग दल के पूर्व अध्यक्ष नितिन राय और कल्याण आश्रम के सलाहकार सत्येंद्र तिवारी ने आरोप लगाया कि मिशनरियाँ सरकारी योजनाओं से मिलने वाले चावल का दुरुपयोग कर रही हैं, जिससे वे अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत कर रही हैं।
राज्य सरकार ने इस मामले पर गंभीर प्रतिक्रिया दी है। खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री दयाल दास बघेल ने कहा कि यदि किसी ने सरकारी चावल का दुरुपयोग किया है, तो यह गंभीर मामला है और इसकी पूरी जांच की जाएगी। इस मुद्दे की गंभीरता को देखते हुए, अगर जल्दी से इस पर कार्रवाई नहीं की गई, तो यह न केवल कानून-व्यवस्था के लिए खतरा बन सकता है, बल्कि यह गरीबों के लिए खाद्य सुरक्षा के उद्देश्य को भी विफल कर सकता है।
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