दीपावली का पर्व सभी के दिल में उत्साह और उल्लास का संचार कर देता है। इस त्यौहार में कई परंपराऐं जुड़ी होती हैं। यूं तो इस पर्व में आने वाले उत्सवों को लेकर प्रचलित विधान हैं मगर कुछ ऐसी परंपराऐं भी हैं जिनमें लोकजीवन की झलक नज़र आती है। यूं तो भारत भले ही कैशलेस इकोनाॅमी के दौर में प्रवेश कर रहा हो, या यहां डिजीटल इंडिया की बात की जा रही हो लेकिन इसकी ग्राम सभ्यता के दर्शन बड़े निराले हैं। यहां कई ऐसी परंपराऐं हैं जो सभी को आश्चर्य में डालती हैं और कई बार तो लोगों को दांतो तले अंगुलियां दबाने पर मजबूर कर देती हैं।
ऐसी ही एक परंपरा है गाय- गौरी पर्व इसे कहीं - कहीं पर गाय गौहरी भी कहा जाता है। अर्थात् कुछ ग्रामीण अपनी मन्नत लेकर माता के दरबार में दीपावली के दिन पहुंचते हैं। साथ में ये यहां रात्रि जागरण कर भजन - कीर्तन करते हैं और सुबह - सवेरे। ये लोग पीठ के बल लेट जाते हैं इसके बाद इन लोगों के उपर से गायों का झुंड निकलता है।
अपने उपर से गायों का झुंड निकल जाने के बाद भी ये सकुशल होते हैं, खुद ही उठकर खड़े हो जाते हैं इसे ये लोग माता का आशीर्वाद मानते हैं। विशेषतौर पर मध्यप्रदेश के उज्जैन जिले की महिदपुर तहसिल में यह आयोजन होता है। इस आयोजन के लिए बड़े पैमाने पर लोग गांवों में पहुंचते हैं। लोग इसे चमत्कार मानते हैं और स्वयं के सकुशल होने पर माता का धन्यवाद देते हैं। अपनी मन्नत पूरी होने पर ये माता के मंदिर में दर्शन करने पहुंचते हैं।
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