आपको खाने में क्या पसन्द है पिज़्जा, चाउमीन, बर्गर, हाका नुडल्स, या कुछ और? ज्यादा खुश मत होईये हम आपको पार्टी नहीं देंगे। अगर मुंह में पानी आ रहा तो जाइये खा लीजिए, क्योंकि इसे पढ़ने के बाद आप खा भी नहीं पाएंगे। क्या आपको पता है कि हमारे भारत देश में कुछ जगहें ऐसी भी हैं जहां लोग कुछ यूनिक चीज़ ही खाकर रहते हैं। छत्तीसगढ़ में भारत की सबसे पुरानी आदिवासी जनजातियां रहती हैं। इन जनजातियों ने आज भी सदियों पुरानी परंपराओं को ज़िंदा रखा है। इन परंपराओं के साथ ही ज़िंदा है आदिवासियों के खानपान की यूनीक आदतें।
आपको जानकार आश्चर्य होगा कि कीड़े की लार से बनी मिठाई, महुए के साथ भूने हुए कीड़े और चींटियों की चटनी आदिवासियों के पसंदीदा भोजन है। वे इन चीज़ों को उतने ही चाव से खाते हैं जितने चाव से शहर के लोग पिज्जा, चाउमीन या हलवा-पूरी खाते हैं। रायपूर में एक इलाका है ‘बैगा बहुल‘, जहां पेड़ों पर सफ़ेद रंग का बुटना कीड़ा पाया जाता है। यह कीड़ा आकार में बहुत छोटा होता है और झुंड में रहता है। यह कीड़ा पेड़ के पत्तों पर बैठता है, जिस पत्ते पर बैठता है उसके नीचे वाले पत्ते पर उसकी लार टपकती रहती है। लार की वजह से पत्ती पर एक सफ़ेद परत जम जाती है। यह स्वाद में काफी मीठा होता है। बैगा आदिवासी के बच्चे इसे मिठाई समझ कर बड़े चाव से खाते हैं। बैगाओं को जब भी जंगल में ये मिलता है वे उसे अपने बच्चों के लिए ले जाते है।
यह कीड़ा ऐसा वैसा नहीं है, बुटना कीड़ा दो ही पेड़ों पर बैठता है, एक मिमिरी और दूसरा अम्बिन। मिमिरी पेड़ की पत्ती में हल्का नशा होता है इसलिए ये आदिवासी अम्बिन पेड़ की पत्तियों पर मिलने वाली लार से ही अपना काम चलाते हैं। ये तो डिस्कवरी चैनल पर देखा है जिसमें एक आदमी था जो कीड़ा ही नहीं सांप, भालू, बन्दर सब कुछ खाता था पर कीड़े की लार से बनी मिठाई खाना पहली बार ही सुना है। चींटियों की चटनी, महुए के साथ भूने कीड़े, ये तो कुछ अज़ीब ही पकवान है। ये आदिवासी ही खा सकते हैं क्योंकि वो जंगलों में रहते हैं हम तो बस सुन के ही आंखे फाड़ रहे। कोई बात नहीं लेकिन मौका मिलेगा तो एक बार ज़रूर चखेंगे।