एड्स की काली छाया में तिल-तिल मरता, एक गाँव

एड्स की काली छाया में तिल-तिल मरता, एक गाँव
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जमशेदपुर: झारखण्ड का एक गाँव अकेलेपन में घुट-घुटकर जीने को मजबूर है, यहाँ न लड़कियों की शादी होती है, न मंगल गीत गाए जाते हैं और न ही यहाँ के किसी लड़के के सिर पर सेहरा सजता है. अगर गलती से इस गाँव की किसी लड़की की शादी हो जाती है, तो वह अपने परिवार से मिलने को तरस जाती है, क्योंकि उसे फिर वापस गाँव नहीं आने दिया जाता. 

यह किस्सा नहीं हकीकत है लौहनगरी के बावनगोड़ा गांव की, जहा दूसरे गांव के लोग रिश्ता जोड़ने से डरते हैं. हालत यह है कि वहां 50 से भी ज्यादा उम्र वाले  110 से अधिक लोग कुंवारे रह गए है. वजह है गाँव में महामारी की तरह फैलता भयानक रोग 'एड्स'. छोटी सी आबादी वाले इस गाँव में 40 से भी अधिक लोग एड्स से पीड़ित है, जिसके चलते नाते-रिश्तेदार भी यहां बसे परिवारों से दूरियां बनाने लगे हैं . 

लेकिन इस गाँव में एक महिला संगीता देवी इस बीमारी के खिलाफ अकेले जंग छेड़े हुए है और हताश गांव वालों के मन में आशा की एक किरण बनी हुई हैं. वे संगीता देवी ही हैं, जिन्होंने उन 40 पीड़ित लोगों की जांच कराई, जिसमे एचआईवी की पुष्टि हुई. वर्ष 2002 में जब यह बीमारी पहली बार सामने आई तो घर से रोगियों को भगाया जाने लगा, तब संगीता देवी ने उन रोगियों की लड़ाई लड़ने को ठाना. घर-घर जाकर एचआईवी के प्रति लोगों को जागरुक किया, उन्हें समझाया-बुझाया. इतना ही नहीं, सभी रोगियों के दुख-दर्द में हमेशा उनके साथ खड़ी रही. अब तक गांव में 30 रोगियों की एड्स से मौत हो चुकी है, इसके बावजूद भी संगीता देवी उनके परिवारों के साथ खड़ी रहती है. 

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