शनिवार को याचिका, आज सुनवाई और ताबड़तोड़ रोक ! सुप्रीम कोर्ट ने कहा- दुकानों पर नाम-पहचान बताने की जरूरत नहीं

शनिवार को याचिका, आज सुनवाई और ताबड़तोड़ रोक ! सुप्रीम कोर्ट ने कहा- दुकानों पर नाम-पहचान बताने की जरूरत नहीं
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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने आज सोमवार (22 जुलाई) को उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकारों द्वारा जारी निर्देशों पर रोक लगा दी, जिसमे सरकार ने कहा था कि कांवड़ यात्रा मार्ग पर स्थित भोजनालयों को ऐसी दुकानों के बाहर मालिकों के नाम प्रदर्शित करने होंगे। न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति एसवीएन भट्टी की पीठ ने सरकार के निर्देशों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर नोटिस जारी करते हुए यह अंतरिम आदेश पारित किया है।

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने कहा ने स्पष्ट किया कि भोजनालयों को यह प्रदर्शित करना होगा कि किस प्रकार का भोजन परोसा जा रहा है। दरअसल, कई याचिकाकर्ताओं ने इन निर्देशों पर धार्मिक भेदभाव पैदा करने का आरोप लगाया है और इन पर रोक लगाने की मांग की है। शनिवार (20 जुलाई) को याचिका दाखिल की गई थी, जिस पर तुरंत सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने फटाफट रोक भी लगा दी। आज, न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति एसवीएन भट्टी की सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने कांवड़ यात्रा के दौरान भोजनालयों पर अपना नाम प्रदर्शित करने के निर्देश पर अंतरिम रोक लगा दी।

अदालत ने कहा है कि कांवड़ियों को उनकी पसंद के आधार पर मानक स्वच्छता बनाए रखते हुए भोजन उपलब्ध कराया जाना जायज़ है। याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता और कांग्रेस नेता डॉ अभिषेक मनु सिंघवी ने निर्देशों के पीछे के “तर्कसंगत संबंध” पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि स्थिति चिंताजनक है, क्योंकि ये निर्देश जारी करने वाले पुलिस अधिकारियों ने ही विभाजन पैदा करने का बीड़ा उठा लिया है। डॉ. सिंघवी का दावा है कि इन निर्देशों से मालिकों की पहचान हो जाएगी और उनका आर्थिक बहिष्कार हो जाएगा। उन्होंने तर्क दिया कि इससे अन्य राज्यों में भी “डोमिनो प्रभाव” पड़ेगा।

पीठ ने पूछा कि क्या ये प्रेस बयान में जारी किए गए 'आदेश' या 'निर्देश' हैं। इस पर डॉ. सिंघवी ने स्पष्ट किया कि पहले निर्देश प्रेस बयानों के माध्यम से जारी किए जाते थे। हालांकि, अधिकारी इसे सख्ती से लागू कर रहे हैं। इस पर अभिषेक सिंघवी ने कहा कि, "ऐसा पहले कभी नहीं किया गया। इसका कोई वैधानिक समर्थन नहीं है। कोई भी कानून पुलिस आयुक्तों को ऐसा करने का अधिकार नहीं देता। यह निर्देश हर हाथगाड़ी, चाय की दुकान चलाने वालों के लिए है, कर्मचारियों और मालिकों के नाम देने से कोई उद्देश्य पूरा नहीं होता।"

न्यायमूर्ति रॉय ने फिर पूछा कि क्या सरकार की ओर से कोई औपचारिक आदेश जारी किया गया है। सिंघवी ने जवाब दिया कि यह एक “छिपा हुआ आदेश” है। सिंघवी ने आगे दावा किया कि पहचान के आधार पर बहिष्कार होगा, इसलिए पहचान बताई ही ना जाए।  हालांकि, जस्टिस भट्टी ने कहा कि इस मुद्दे को बढ़ा-चढ़ाकर नहीं बताया जाना चाहिए। उन्होंने संक्षेप में कहा कि इन निर्देशों के तीन आयाम हैं: सुरक्षा, मानक और धर्मनिरपेक्षता।

इस पर कांग्रेस नेता और वकील सिंघवी ने अदालत को बताया कि देश में कांवड़ यात्रा दशकों से होती आ रही है। उन्होंने कहा कि अदालत को इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि सभी धर्मों के लोग - मुस्लिम, ईसाई और बौद्ध - कांवड़ियों की मदद कर रहे हैं। जहां तक ​​शाकाहारी और मांसाहारी भोजन के मुद्दे का सवाल है, डॉ सिंघवी ने अदालत को बताया कि मांसाहारी भोजन परोसने के मामले में सख्त कानून मौजूद हैं। सिंघवी ने सभी के लिए जारी किए गए इस आदेश को सीधे हिन्दू-मुस्लिम से जोड़ते हुए कहा कि, "हिंदुओं द्वारा चलाए जाने वाले बहुत से शुद्ध शाकाहारी रेस्तराँ हैं, लेकिन उनमें मुस्लिम कर्मचारी हैं। क्या मैं कह सकता हूँ कि मैं वहाँ जाकर खाना नहीं खाऊँगा? क्योंकि भोजन को किसी तरह से उन्होंने [मुस्लिम कर्मचारियों ने] छुआ है?"

जस्टिस भट्टी ने एक दिलचस्प कहानी साझा की। उन्होंने बताया कि केरल में एक होटल हिंदू चलाता है और दूसरा मुस्लिम चलाता है। लेकिन वे अक्सर मुस्लिम के स्वामित्व वाले शाकाहारी होटल में जाते थे क्योंकि वे स्वच्छता के अंतरराष्ट्रीय मानकों का पालन करते थे। डॉ सिंघवी ने बताया कि निर्देशों में "स्वेच्छा से" लिखा है। उन्होंने तर्क दिया कि ये इसलिए छिपाए गए हैं क्योंकि अगर नाम उजागर किए गए तो व्यक्ति को आर्थिक रूप से वंचित होना पड़ेगा। अगर नाम उजागर नहीं किए गए तो व्यक्ति को जुर्माना भरना पड़ेगा।

डॉ. सिंघवी ने स्पष्ट किया कि यद्यपि ये स्वैच्छिक निर्देश हो सकते हैं, परन्तु उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक बयान जारी किया है कि ये निर्देश सामान्य रूप से सभी जिलों पर लागू होंगे। शुरुआत में मुजफ्फरनगर पुलिस ने ये निर्देश जारी किए थे। अब अलीगढ़ नगर निगम और अन्य जिलों में भी इसी तरह के निर्देश जारी किए गए हैं, जिससे अन्य राज्यों में भी इसका असर देखने को मिल रहा है। आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने सरकारों के आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी है, अब कोई भी आदमी किसी भी नाम से दूकान चला सकता है, उसे  दूकान के सामने नाम लिखने की कोई जरूरत नहीं। 

विपक्षी दलों और कुछ मुस्लिम नेताओं ने सरकार के निर्देश की आलोचना करते हुए इसे सांप्रदायिक और विभाजनकारी बताया है। उनका तर्क है कि भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार भेदभावपूर्ण राजनीति कर रही है। हालांकि, भाजपा इस आदेश का बचाव करते हुए कहती है कि हिंदुओं को अपनी धार्मिक प्रथाओं की पवित्रता को बनाए रखने का अधिकार है, जैसा कि अन्य धर्मों के लोगों को है। और फिर नाम किसी एक समुदाय को लिखने के लिए नहीं कहा गया है, हर किसी को अपनी दूकान पर मालिक का असली नाम लिखना है। भाजपा का तर्क है कि ये तो सभी  ग्राहकों के लिए पारदर्शिता है, और फिर नाम या पहचान छिपाकर धंधा करना ही क्यों है ? क्या कोई गलत काम करने की मंशा है ? बहरहाल, भाजपा का कोई तर्क काम नहीं आया। 

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