आखिर क्यों बढ़ते जा रहे है पेट्रोल-डीजल के दाम? जानिये किस सरकार की कितनी हिस्सेदारी

आखिर क्यों बढ़ते जा रहे है पेट्रोल-डीजल के दाम? जानिये किस सरकार की कितनी हिस्सेदारी
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नई दिल्ली। देश में पेट्रोल डीज़ल के दामों में लगातार बढ़ोतरी होती जा रही है। इसके विरोध में आज कांग्रेस पार्टी द्वारा पुरे भारत  में देशव्यापी आंदोलन चलाया जा रहा है। यह आंदोलन कई जगह तीव्र रूप लेता दिख रहा है और इस पर देश भर में राजनीतिक सियासत भी शुरू हो चुकी है। लेकिन क्या आप जानते है कि देश में पेट्रोल और डीज़ल की कीमते अचानक इतनी तेजी से क्यों  बढ़ रही है और इसमें किस सरकार का कितना हिस्सा होता है। अगर नहीं तो निराश मत होइए क्योकि आज हम आपको पेट्रोल -डीज़ल के दामों में लगी इस आग के विभिन्न्न पहलू से रूबरू करवाने जा रहे है। 

कच्चे तेल की कीमत भी बढ़ी है लेकिन... 

ये बात तो सही है कि विश्व में इस वक्त क्रूड आयल यानी कच्चे तेल की कीमते भी बढ़ी है  लेकिन देश में पेट्रोल डीज़ल के दामों के बढ़ने की ये इकलौती वजह नहीं है। उदहारण के तौर पर 10 सितंबर 2018 को कच्चे तेल की कीमत 4,883 रुपये प्रति बैरल है। एक बैरल में 159 लीटर होते है। इस हिसाब से भारत में आयात होने वाले तेल की कीमत मात्र  30.71 रुपये है। परन्तु देश में पेट्रोल की कीमत तकरीबन 80 रुपये लीटर के पार हो चुकी है। 


 

न निर्माण शुल्क न आयत, सबसे बड़ा है TAX 

भारत में पेट्रोल और डीज़ल के दामों के आसमान छूती कीमतों का सबसे बड़ा कारण है उसपे लगने वाले विभिन्न तरह के टैक्स। दरअसल पेट्रोल-डीज़ल देश की उन चीजों में से है जिनपर सबसे ज्यादा टैक्स लगता है। हाल ही में गैसोलीन नेटवर्क की एक रिपोर्ट के मुताबिक हम जिस कीमत पर पेट्रोल खरीदते हैं उसका सिर्फ 48 फीसदी उसका निर्माण मूल्य होता है जबकि बाकि का पूरा हिस्सा टैक्स होता है। 

भारत में पेट्रोल और डीज़ल पर मुख्यतः दो स्तर पर टैक्स लगाया जाता है। 

-  सबसे पहले पेट्रोल डीज़ल पर केंद्र सरकार की एक्साइज ड्यूटी और डीलर का कमीशन जोड़ा जाता है। 
-  इसके बाद विभिन्न राज्य अपना-अपना टैक्स और वैट लगाते हैं और फिर अंतिम कीमत तय की जाती है। 


टैक्स के पहले का गणित


 भारत में विदेशो से आयत  किये गए क्रूड ऑइल को रिफाइनरीज में पहुंचा कर प्रोसेस किया जाता है। इसके बाद इसे पेट्रोल पंपों तक पहुंचाया जाता है। इसमें लगने वाली लगत कुछ इस प्रकार है। एंट्री टैक्स, रिफाइनरी प्रोसेसिंग व अन्य ऑपरेशन कॉस्ट मिलकर पेट्रोल पर 3.68 रुपये और डीजल पर 6.37 रुपये प्रति लीटर की अतिरिक्त लागत आती है। 

इसके बाद ऑइल मार्केटिंग कंपनियों की मार्जिन, फ्रेट कॉस्ट और ढुलाई मिलाकर पेट्रोल पर 3.31 रुपये और डीजल पर 2.55 रुपये प्रति लीटर जोड़े जाते है। इस तरह से पेट्रोल के दाम अब 37.70 रुपये जबकि प्रति लीटर और डीजल के  39.63 रुपये होते है। 


टैक्स लगने के बाद का गणित

केंद्र सरकार फ़िलहाल पेट्रोल पर 19.48 रुपये प्रति लीटर और  डीजल पर 15.33 रुपये प्रति लीटर का एक्साइज टैक्स वसूल रही है। इस ड्यूटी के लगने के बाद  पेट्रोल की कीमत 37.70 रुपये  से बढ़ कर 57.18 रुपये प्रति लीटर और डीजल की कीमत 39.63 रुपये से बढ़ कर 54.96 रुपये हो जाती है। 

डीलरों का भी है कमिशन

इसके बाद पेट्रोल और डीज़ल के दामों में डीलरों का कमिशन भी जुड़ता है जिससे पेट्रोल के दाम तक़रीबन 4 रूपए प्रति लीटर और डीज़ल के दाम तक़रीबन 3 तक  रूपए प्रति लीटरबढ़ जाते है। 

 

पिक्चर अभी बाकी है दोस्त....

पेट्रोल-डीज़ल पर लगने वाले टैक्स का सिलसिला यहाँ पर ख़तम नहीं होता बल्कि अभी तो इसमें एक बड़ा हिस्सा जोड़ा जाना बाकी रह गया है। दरअसल केंद्र सरकार और डीलर कंपनियों के हिस्से के बाद विभिन्न राज्यों की सरकार भी पेट्रोल-डीजल पर अलग -अलग टैक्स लगाती है जिस वजह से इनके दाम साल नई  उच्चाइयों को छूते नजर आते है। 

किस सरकार का कितना हिस्सा 
पेट्रोल और डीज़ल पर देश के तमाम राज्यों की सरकार इस तरह से वसूलती है टैक्स

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