नई दिल्ली: पीएम नरेंद्र मोदी ने नए संसद भवन में स्वतंत्रता सेनानी, वीर विनायक दामोदर सावरकर की जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। इस दौरान उनके साथ केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, लोकसभा स्पीकर ओम बिरला और संसदीय मामलों के मंत्री प्रह्लाद जोशी भी मौजूद रहे। इन बड़े नेताओं के अतिरिक्त कई अन्य सांसदों ने भी वीर सावरकर को उनकी जन्म-जयंती पर श्रद्धांजलि दी। बता दें कि, वीर सावरकर का जन्म आज ही के दिन 1889 को महाराष्ट्र के नासिक स्थित भागपुर में हुआ था।
#WATCH | Prime Minister Narendra Modi pays tributes to VD Savarkar on the occasion of Savarkar Jayanti in the new Parliament. pic.twitter.com/CTy8fIPzUG
— ANI (@ANI) May 28, 2023
आज वैदिक मंत्रोच्चार के बीच चोल राजदंड ‘सेंगोल’ को तमिल ‘अधीनम’ पुरोहितों की उपस्थिति में नए संसद भवन में स्थापित किया गया। उद्घाटन कार्यक्रम के बाद पीएम मोदी ने अन्य शीर्ष नेताओं के साथ वीर सावरकर की तस्वीर पर श्रद्धांजलि दी, और हाथ जोड़ कर उन्हें नमन किया। अपने रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ के 101वें एपिसोड में भी प्रधानमंत्री मोदी ने वीर सावरकर को याद किया और उनके द्वारा किए गए महान कार्यों का जिक्र किया।
पीएम मोदी ने कहा कि वीर सावरकर के त्याग, साहस और संकल्प-शक्ति की गाथाएँ आज भी हमें प्रेरणा देती हैं। उन्होंने उस दिन को याद किया, जब पीएम मोदी अंडमान में उस कोठरी में गए थे, जहाँ वीर सावरकर को अंग्रेजों ने दोहरे कालापानी (50 साल) की सज़ा के दौरान रखा था। प्रधानमंत्री ने कहा कि वीर सावरकर का व्यक्तित्व वीरता और विशालता में समाहित था, उनके निर्भीक और स्वाभिमानी स्वभाव को गुलामी की मानसिकता रास नहीं आती थी। पीएम मोदी ने कहा कि, स्वतंत्रता आंदोलन के अलावा सामाजिक न्याय और समानता के लिए भी वीर सावरकर ने बहुत कुछ किया।
बता दें कि ‘हिंदुत्व’ शब्द को जन-जन तक पहुँचाने वाले विनायक दामोदर सावरकर को अंग्रेजों ने आजीवन कारावास की दो-दो सज़ाएँ सुनाई थीं। 1857 में भारत में जो हुआ, वो कोई सैन्य विद्रोह नहीं, बल्कि भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम था, विदेशों तक जाकर और शोध करके यह बताने वाले भी अकेले सावरकर ही थे। जबकि, उस समय महात्मा गांधी और पंडित नेहरू भी विदेशों में पढ़ाई कर चुके थे, लेकिन उनका ध्यान इस तरफ नहीं गया। 1857 की क्रांति में रानी लक्ष्मीबाई, नाना साहेब पेशवा, तात्या टोपे जैसे क्रांतिकारियों ने अंग्रेज़ों से लोहा लिया था, जिसे अंग्रेज़ों ने सैन्य विद्रोह बताकर छुपा रखा था, ताकि भारतीय उस शौर्य गाथा को याद कर वापस खड़े न हो सकें। लेकिन, सावरकर ने इस पर पूरी किताब लिखी, जिसे अंग्रेज़ों ने छपने से पहले ही बैन करवा दिया, इसके बाद वीर सावरकर ने हाथ से लिख-लिखकर इसकी प्रतियां बांटी। भगत सिंह और नेताजी सुभाष चंद्र बोस जैसे भारत के अमर सपूतों ने भी उस किताब ‘1857 का स्वातंत्र्य समर’ से प्रेरणा ली थी।
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