शायराना सी है ज़िन्दगी की फ़िज़ा : मिर्ज़ा ग़ालिब

शायराना सी है ज़िन्दगी की फ़िज़ा : मिर्ज़ा ग़ालिब
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बूए-गुल, नाला-ए-दिल, दूदे चिराग़े महफ़िल,
जो तेरी बज़्म से निकला सो परीशाँ निकला।

चन्द तसवीरें-बुताँ चन्द हसीनों के ख़ुतूत,
बाद मरने के मेरे घर से यह सामाँ निकला।

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