भारत में 21 दिनों का लॉकडाउन किया गया है. ताकि कोरोना वायरस को रोका जा सके. लेकिन कहीं भी धार्मिक स्थल पर जुटे लोगों को वहां से हटाना बेहद संवेदनशील मामला है. दिल्ली के निजामुद्दीन स्थित तबलीगी मरकज पर जुटे बड़ी संख्या में जमातियों को हटाने के लिए जो कार्य अब किया गया, उसे काफी पहले किया जाना चाहिए था. इसके लिए भारी संख्या में पुलिस बल की जरूरत पड़ती, विवाद भी हो सकता था, लेकिन इन स्थितियों से निबटने के लिए ही पुलिस बल को तैयार किया जाता है. प्रशासनिक अधिकारियों को ऐसी ही स्थितियों से निपटने के लिए प्रशिक्षण दिया जाता है. पूरे प्रकरण में अब तक एक बात तो सामने आ चुकी है कि जो अब किया गया, वह पहले भी किया जा सकता था. प्रशासन के साथ पुलिस अधिकारियों को चाहिए था कि लोग वहां एकत्र ही न हों.
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आपकी जानकारी के लिए बता दे कि मामला धार्मिक व्यवस्था से जुड़े होने के कारण भले ही संवेदनशील था, लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि इस समय लोगों को कोरोना वायरस से बचाने के लिए तमाम व्यवस्थाएं की जा रही है. जो भी इन व्यवस्थाओं का उल्लंघन कर रहे हैं, उन सभी को कानून की जद में लाकर कार्रवाई करनी चाहिए. उल्लंघन एक जगह होता है, लेकिन इससे अव्यवस्था काफी दूर तक फैलती है. जब एक जगह सख्ती बरती जाती है, तो उसका संदेश भी दूर तक जाता है.
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वायरस संक्रमण की विकट स्थिति में ऐसा नहीं है कि प्रशासन कोई कार्रवाई करने में सक्षम नहीं है, या फिर पुलिस के पास बल की कमी है, कमी रह गई तो मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए त्वरित और प्रभावी कार्रवाई करने की. पुलिस उनके साथ बैठक करती है, लेकिन पुलिस की कार्रवाई सिर्फ बैठक तक ही सीमित रह जाती है. प्रशासन की कार्रवाई वहां का निरीक्षण करने तक सिमट जाती है.
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