बांग्लादेशी पुलिस भी 'मजहबी' हो गई, इस्लामी हिंसा को दी क्लीन चिट..! कहा- हिंसा का कारण राजनितिक

बांग्लादेशी पुलिस भी 'मजहबी' हो गई, इस्लामी हिंसा को दी क्लीन चिट..! कहा- हिंसा का कारण राजनितिक
Share:

ढाका: बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों, विशेषकर हिंदुओं, पर हो रहे अत्याचारों को लेकर स्थिति बेहद गंभीर बनी हुई है। हाल ही में बांग्लादेश पुलिस ने एक रिपोर्ट जारी की, जिसमें 4 अगस्त 2024 से 20 अगस्त 2024 के बीच हुई घटनाओं का विश्लेषण प्रस्तुत किया गया। इन 16 दिनों के दौरान अल्पसंख्यकों पर हमले तेज हुए, खासतौर पर तब जब शेख हसीना को देश छोड़कर भारत में शरण लेनी पड़ी। 

पुलिस की रिपोर्ट के अनुसार, इन दिनों में 1,415 घटनाओं को राजनीतिक हिंसा कहा गया, जबकि मात्र 20 घटनाओं को सांप्रदायिक। यह आंकड़ा कट्टरपंथी मानसिकता वाली मोहम्मद यूनुस की कार्यवाहक सरकार के प्रयासों को उजागर करता है, जो इन हमलों को राजनीतिक कारणों से जोड़कर असली धार्मिक समस्या को दबाने की कोशिश कर रही है। 

बांग्लादेश हिंदू बुद्ध ईसाई एकता परिषद के अनुसार, 4 अगस्त से 20 अगस्त 2024 के बीच अल्पसंख्यकों पर 2,010 हमले हुए। इनमें मंदिरों को तोड़ा गया, घर जलाए गए, और संपत्तियों पर कब्जा किया गया। 5 अगस्त 2024 को ही 1,452 घटनाएं हुईं, जो कि कुल मामलों का 82.8% थीं। उस दिन हिंदुओं के घरों को जलाना, महिलाओं पर हमला करना और धार्मिक स्थलों को तोड़ना आम बात हो गई थी। ये हमले धार्मिक नफरत का सीधा परिणाम थे, जिसे पुलिस राजनीतिक हिंसा बताकर छिपाने की कोशिश कर रही है।  

इस्लामी भीड़ द्वारा हिंदुओं पर अत्याचार की घटनाएं हाल के वर्षों में तेजी से बढ़ी हैं। मंदिरों पर हमले, मूर्तियों को खंडित करना, हिंदू महिलाओं के साथ बलात्कार और उनके परिवारों को जबरन इस्लाम कबूल करवाने जैसी घटनाएं अब आम हो गई हैं।  

नंदकिशोर मंदिर की घटना: एक भीड़ ने नंदकिशोर मंदिर को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया और मूर्तियों को खंडित कर सड़कों पर फेंक दिया।  
महिलाओं पर हमले: ब्राह्मणबरिया जिले में हिंदू महिलाओं को अगवा कर उनके साथ सामूहिक बलात्कार की घटनाएं सामने आईं।  
मंदिरों की लूटपाट: चट्टग्राम के प्रसिद्ध दुर्गा मंदिर को पहले लूटा गया, फिर उसमें आग लगा दी गई।  

इस तरह के अनगिनत हमले इस्लामी कट्टरपंथियों द्वारा हिन्दू, बौद्धों पर किए गए, लेकिन बांग्लादेशी पुलिस इसे राजनितिक हिंसा बताकर रफादफा करने की कोशिश कर रही है। जबकि. पुलिस ने खुद 4 अगस्त से 20 अगस्त तक 1,769 घटनाएं दर्ज कीं, जिनमें से 1,415 मामलों को राजनीतिक प्रेरित बताया और केवल 1.59% घटनाओं को सांप्रदायिक। इससे साफ है कि सरकार इन हमलों को धार्मिक हिंसा की बजाय राजनीतिक रंग देने की कोशिश कर रही है।  

पुलिस ने 62 मामले दर्ज किए और 951 सामान्य डायरियां (जीडी) बनाई। अब तक 63 लोगों को गिरफ्तार किया गया है, लेकिन अधिकांश मामलों में न्याय की उम्मीद नहीं है। पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ धार्मिक हिंसा कोई नई बात नहीं है। दशकों से हिंदुओं को निशाना बनाया जा रहा है, लेकिन अब कट्टरपंथी ताकतें खुलकर सामने आ गई हैं।  

पाकिस्तान में मंदिरों पर हमले: सिंध और बलूचिस्तान में मंदिरों को निशाना बनाया गया और हिंदू समुदाय को पलायन करने पर मजबूर किया गया।  

अफगानिस्तान में बुद्ध मूर्तियों का ध्वंस: भारत में भीम-मीम के नारे लगाने वाले इस्लामी कट्टरपंथियों ने ही अफगानिस्तान में विश्व प्रसिद्द बुद्ध की मूर्तियों को बारूद लगाकर उड़ा दिया था, ये उनका बुद्ध और दलितों के प्रति प्रेम था?

बांग्लादेश में हिंदू विरोधी मानसिकता: यहां हिंदुओं को बार-बार "काफिर" कहकर उनके खिलाफ नफरत फैलाई जाती है।  

बांग्लादेश हिंदू बुद्ध ईसाई एकता परिषद ने इस हिंसा को धार्मिक स्वतंत्रता और अल्पसंख्यकों के जीवन पर सीधा हमला बताया है। परिषद ने सरकार पर आरोप लगाया है कि वह कट्टरपंथियों को बचाने के लिए असली सांप्रदायिक हिंसा को दबा रही है। हालांकि, बांग्लादेश सरकार ने व्हाट्सएप ग्रुप और हेल्पलाइन नंबर 999 जैसी पहल शुरू की है, लेकिन इनसे हिंसा में कोई कमी नहीं आई है। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को अब इस पर ध्यान देने की जरूरत है, ताकि बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों को सुरक्षित माहौल मिल सके।  यह स्थिति न केवल बांग्लादेश की सरकार की विफलता को उजागर करती है, बल्कि इस्लामी कट्टरता के बढ़ते प्रभाव को भी स्पष्ट करती है।

Share:

रिलेटेड टॉपिक्स
- Sponsored Advert -
- Sponsored Advert -