कांग्रेस के राजनीतिक दावपेंच, राष्ट्रीय सुरक्षा की कीमत पर चुनावी लाभ?

कांग्रेस के राजनीतिक दावपेंच, राष्ट्रीय सुरक्षा की कीमत पर चुनावी लाभ?
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दिल्ली। जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव का बिगुल बजते ही प्रदेश में राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। प्रदेश में 18, 25 सितंबर और 01 अक्टूबर को चुनाव होना है, जिसकी मतगणा 04 अक्टूबर को होगी। जिसे लेकर कांग्रेस और भाजपा के साथ क्षेत्रीय दलों ने कमर कस ली है। प्रदेश में दोनों ही प्रमुख दलों के नेताओं की बैठकों का दौर शुरू हो चूका है।

पिछले दिनों कांग्रेस नेताओं और नेशनल कॉन्फ्रेंस पार्टी के नेताओं के बीच बैठक हुई जिसमे उन्होंने साथ चुनाव लड़ने की घोषणा की है। प्रदेश के विधानसभा चुनाव में अब कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस एक साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ेगी। पिछले दिनों कांग्रेस पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने एक टिप्पणी कर कहा की जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की जीत पार्टी के लिए देश में बाकी के हिस्सों पर अपना दावा जताने का एक नया रास्ता तैयार करेगी।

उनके इस बयान के बाद आलोचक कांग्रेस को घेरने की कोशिश कर रहे है, वहीं यह गठबंधन भाजपा के सामने चुनौती इसलिए बन सकता है क्युकी कांग्रेस चाहेगी की जम्मू डिवीजन में बीजेपी को वह 15 से 20 सीटों पर रोक दे। लेकिन दूसरी ओर नेशनल कॉन्फ्रेंस के कुछ ऐसे चुनावी वादे जो कांग्रेस के लिए मुसीबत बन सकते है। बीजेपी चुनाव में उन मुद्दों पर कांग्रेस पार्टी को एंटी नेशनल साबित करने का कोई मौका नहीं छोड़ेगी। 370 और 35ए के खात्मे के बाद जम्मू कश्मीर में पहली बार विधानसभा चुनाव हो रहे है।

कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकारों के तहत सत्ता के केंद्रीकरण तक पार्टी की आलोचना की जाती रही है। 1975 में आपातकाल लागू होने से लेकर लोकतांत्रिक संस्थाओं को बुरी तरह से कमजोर किया गया था। यही कारण है की पार्टी की इसकी सत्तावादी प्रवृत्तियों के लिए आलोचना की जाती रही है। वहीं कांग्रेस पार्टी के आलोचक जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35ए का लागू होना इसका एक उदाहरण मानते है। कई लोगों ने राज्य को विशेष दर्जा देने वाले इन अनुच्छेद को कांग्रेस के कुछ खास वोट बैंकों को खुश करने के रूप में भी देखा।

वहीं पार्टी की अनिच्छा इन अनुच्छेदों को हटाने के लिए, भले ही वे अलगाववाद और उग्रवाद को बढ़ावा दे रहे थे, यह दर्शाता है कि पार्टी की एक व्यापक रणनीति है जो अस्थिर क्षेत्रों में नियंत्रण बनाए रखने के लिए ऐसे प्रावधानों का उपयोग करने पर केंद्रित है। यह रणनीति अलगाववादी और उग्रवादी ताकतों के प्रति पार्टी की सहनशीलता को दर्शाती है। खड़गे की टिप्पणी वक्फ बोर्ड के कार्यों से एक समानता प्रदर्शित करती है, जो मुस्लिम धार्मिक और धर्मार्थ संपत्ति के प्रबंधन के लिए एक वैधानिक निकाय है। धार्मिक प्राधिकरण की आड़ में भूमि का अवैध रूप से अधिग्रहण करने का अक्सर वक्फ बोर्ड पर आरोप लगाया जाता है।

यह प्रथा, जिसमें चुनिंदा व्यक्तियों के लिए व्यापक भूमि और संपत्ति पर नियंत्रण शामिल है, कांग्रेस पार्टी की अपने हितों और अपने समर्थकों के हितों को पूरा करने के लिए संसाधनों और शक्ति का दुरुपयोग करने की एक व्यापक योजना को प्रकट करती है। वक्फ बोर्ड की गतिविधियों में पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी के कारण आलोचना की जाती है, ठीक उसी तरह कांग्रेस पार्टी के शासन में भी अक्सर पारदर्शिता की कमी देखी जाती है और विशिष्ट समुदायों के हितों को पूरा करने पर जोर दिया जाता है, जो चुनावी जीत हासिल करने के लिए किया जाता है।

अनेक विशेषज्ञों और इतिहासकारों का मत है कि कांग्रेस पार्टी का राष्ट्रीय सुरक्षा के मामले में प्रदर्शन, विशेषकर जम्मू-कश्मीर में, बहुत प्रभावी नहीं रहा है। कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकारों के कार्यकाल में, इस क्षेत्र में उग्रवाद में वृद्धि देखी गई, जहां आतंकवादियों और अलगाववादियों को अक्सर मुक्त रूप से काम करने की अनुमति दी गई। कांग्रेस पार्टी का नेशनल कॉन्फ्रेंस जैसी क्षेत्रीय पार्टी के साथ गठबंधन, जो अलगाववादी विचारधारा का समर्थन करती है, ने स्थिति को और जटिल बना दिया है। यूपीए सरकार के कार्यकाल के दौरान, उग्रवाद के प्रति नरम दृष्टिकोण अपनाने से इस क्षेत्र में आतंकवादी गतिविधियों में वृद्धि हुई, जिसे अक्सर इस क्षेत्र में अस्थिरता के प्रमुख कारणों में से एक माना जाता है।

इसलिए, खड़गे की टिप्पणी केवल जम्मू-कश्मीर में चुनाव जीतने के बारे में नहीं है, बल्कि यह कांग्रेस पार्टी की राजनीतिक लाभ के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता करने की इच्छा को दर्शाती है। अनुच्छेद 370 और 35A पर बहस को फिर से शुरू करके, कांग्रेस पार्टी चुनावी लाभ के लिए क्षेत्र में हासिल की गई शांति और स्थिरता को जोखिम में डालकर खतरनाक खेल खेल रही है, जो क्षेत्र की सुरक्षा और स्थिरता के लिए हानिकारक हो सकता है।

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