नई दिल्ली: सर्वोच्च न्यायालय ने आज यानी सोमवार (5 सितंबर, 2022) को उस रिट याचिका के आधार पर नोटिस जारी किया, जिसमें सियासी दलों द्वारा मजहबी प्रतीकों और नामों के प्रयोग पर प्रतिबंध लगाने की माँग की गई है। सैयद वसीम रिजवी द्वारा दाखिल की गई याचिका में उन्होंने संविधान का हवाला देते हुए कहा कि धर्म/मजहब के आधार पर वोटर्स को लुभाना सही नहीं है। वरिष्ठ अधिवक्ता गौरव भाटिया ने उनकी ओर से शीर्ष अदालत में पक्ष रखा।
इस दौरान उन्होंने कोर्ट में राज्य स्तर की दो ऐसी पार्टियों का भी नाम लिया, जिनके नाम में ही ‘मुस्लिम’ शब्द है। इसी तरह कुछ सियासी दलों ने अपने ध्वज पर चाँद-सितारा लगा रखा है। इस याचिका में मजहबी नाम व प्रतीक चिह्न वाले कई ऐसी राजीतिक पार्टियों के नाम गिनाए गए हैं। गौरव भाटिया ने शीर्ष अदालत के एक फैसले की भी याद दिलाई, जिसमें सेक्युलरिज्म को भारतीय संघ की मूल विशेषता कहा गया है। काउंसल ने पूछा कि क्या सियासी दल मजबी नाम/प्रतीक चिह्नों का प्रयोग कर सकते हैं? उन्होंने आगे कहा कि यदि किसी मजहबी नाम या प्रतीक चिह्न वाली पार्टी का प्रत्याशी धार्मिक आधार पर वोट माँगता है, तो ये नियमों का उल्लंघन है। उन्होंने IUML (इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग) की मिसाल दी, जिसके लोकसभा और राज्यसभा में सांसद हैं, केरल में MLA हैं।
वहीं, शीर्ष अदालत ने इस मामले की अगली सुनवाई की तारीख़ 18 अक्टूबर को तय की है। इस सम्बन्ध में निर्वाचन आयोग (ECI) को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया गया है। साथ ही जिन सियासी दलों की बहस के दौरान चर्चा हुई, शीर्ष अदालत ने उन्हें भी नोटिस जारी करने के लिए कहा है। न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति कृष्णा मुरारी की बेंच ने इस याचिका पर सुनवाई की। बता दें कि कई सियासी दल खासकर मुस्लिम समुदाय के वोटर्स ही लुभाते हैं और इसके लिए अपने ध्वज को हरे रंग में दिखाते हुए चाँद-सितारे का इस्तेमाल करते हैं। साथ ही ओवैसी जैसे नेता सरेआम हर रैली में मुस्लिमों की बातें करते हैं।
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