यूं तो आज हर इंसान व्यस्त है। दूसरों के लिए तो दूर, खुद के लिए भी उपयुक्त वक़्त की कमी आज देखने के लिए मिल रहा है। ऐसे में यदि अपनी दिनचर्या से थोड़ा-बहुत वक़्त भी किसी के काम में आ सकते है, तो यह किसी मिसाल के माफिक है। और फिर बात एक बार की नहीं है, यदि आप परंपरा के रूप में किसी की सेवा करने में सक्षम हैं, तो यकीन मानिए, आप किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं।
ठीक ऐसी ही मिसाल कायम करते हुए राजनीति और समाजसेवा की खूबसूरत कारीगरी को एक-दो नहीं, बल्कि कई सालों से अंजाम दे रहे हैं देश के जाने-माने राजनीतिज्ञ बैजयंत 'जय' पांडा। बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और असम व दिल्ली के पार्टी प्रभारी बैजयंत खुद में समाजसेवा का भाव बखूबी रखते हुए आगे है। उन्होंने समाज के प्रति अपने निष्ठा भाव को स्वदेशी सोशल मीडिया मंच, कू ऐप के माध्यम से बयान दिया है।
सोशल मीडिया पर बहुत ही खूबसूरत पोस्ट करते हुए बैजयंत ने कहा है: ''जैसा कि हर गर्मियों में पीढ़ियों से हमारा पारिवारिक रिवाज रहा है, इस महीने की शुरुआत से, ओडिशा और दिल्ली में मेरे घर-कार्यालयों के बाहर राहगीरों के लिए पानी और छाछ का दैनिक प्रावधान शुरू हुआ।''
उन्होंने इस पोस्ट के साथ ही एक बहुत ही दिलचस्प वीडियो भी साझा किया है, जिसमें पास से निकलने वाले राहगीर साफ-सुथरे घड़ों में रखे पानी और छाछ से अपनी प्यास बुझाते हुए नज़र आ रहे है। मानों तो यह पोस्ट अपने में बहुत कुछ कहती है और ना मानो तो कुछ भी नहीं। गर्मी के दिनों में जहाँ तपती धूप और जलता दिन गले को हर थोड़ी देर में सूखाने का कारण भी बन जाता है, ऐसे में यदि कोई एक गिलास पानी पिलाने वाला मिल जाए, तो आधी तकलीफें तो यूं ही समाप्त हो जाती हैं।
हर कोई इस आग उगलती गर्मी से बचने की चाह रखता है, लेकिन काम की जिम्मेदारी और पेट का सवाल सारे जवाब खुद-ब-खुद ही देकर चले जाते है। ऐसे में गर्मी के इन दिनों में हर वर्ष बैजयंत 'जय' पांडा ओडिशा और दिल्ली में अपने घर और कार्यालय के बाहर राहगीरों के लिए पानी और छाछ की व्यवस्था करते हैं। खास बात यह है कि यह परंपरा उनके परिवार में कई पीढ़ियों से चली आ रही है, जो प्रत्यक्ष तौर पर पुण्य का काम है। बोला जाता है कि हर घर, समाज या धर्म की विशेष मान्यताएँ और परम्पराएँ होती है, जिनके कदमों पर चलकर ही समाज आगे बढ़ता है। बैजयंत 'जय' पांडा की पीढ़ी-दर-पीढ़ी से चली आ रही गर्मी के दिनों में पानी और छाछ से प्यास बुझाने की यह परंपरा वाकई में सराहनीय है।
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