शिमला: हिमाचल प्रदेश की सुक्खू सरकार अपने दो साल पूरे करने से पहले ही गहरे विवादों और आलोचनाओं के घेरे में है। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू, जिन्हें एक प्रभावी और प्रगतिशील नेता के रूप में देखा गया था, अब अपने प्रशासन की विफलताओं और जनता से किए गए वादों को पूरा न करने के कारण तीव्र आलोचनाओं का सामना कर रहे हैं। उनके कार्यकाल में शासन से जुड़े कई मुद्दे सामने आए हैं, जिससे जनता का असंतोष बढ़ता जा रहा है।
अधूरे वादे और सरकार की नाकामी:-
सुक्खू सरकार ने चुनाव प्रचार के दौरान कई बड़े वादे किए थे, जिनमें बेरोजगारी भत्ता, बुनियादी ढांचे में सुधार और राज्य की अर्थव्यवस्था को मजबूती देना प्रमुख थे। लेकिन इन वादों में से ज्यादातर अब तक पूरे नहीं हुए हैं। बेरोजगारी भत्ता योजना, जो सुक्खू के चुनावी एजेंडे का प्रमुख हिस्सा थी, अभी तक सफलतापूर्वक लागू नहीं हो पाई है। इस योजना के माध्यम से बेरोजगार युवाओं को आर्थिक सहायता दी जानी थी, लेकिन इसे लेकर कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं, जिससे राज्य के बेरोजगार युवा हताश हैं। अब जब नौकरीपेशा लोगों को ही वेतन-पेंशन नहीं मिल पा रही है, तो बेरोज़गार युवा भत्तों की क्या ही उम्मीद रखें ?
इसी तरह, ग्रामीण क्षेत्रों में सड़क कनेक्टिविटी को बेहतर बनाने और पर्यटन को बढ़ावा देने के वादों में भी कोई विशेष प्रगति नहीं हुई है। राज्य के दूरदराज के इलाकों में अभी भी बुनियादी ढांचे की कमी है, जिससे स्थानीय निवासियों की परेशानियां बढ़ रही हैं। इन क्षेत्रों में न सिर्फ सड़कें खराब हैं, बल्कि स्वास्थ्य और शिक्षा सेवाओं में भी लगातार गिरावट हो रही है। सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की कमी और अस्पतालों में सुविधाओं का अभाव अब आम समस्या बन चुकी है।
शिमला में जनसांख्यिकी बदलाव का विवाद और तुष्टिकरण:-
शिमला में जनसांख्यिकी बदलाव को लेकर भी विवाद खड़ा हो गया है। हाल ही में शहर में एक मस्जिद के निर्माण को लेकर स्थानीय लोगों में विरोध बढ़ा है। विरोध करने वालों में खुद कांग्रेस मंत्री अनिरुद्ध सिंह भी शामिल हैं। जिन्होंने कहा था कि मस्जिद अवैध बनाई गई है, डेमोग्राफी चेंज की वजह से लव जिहाद, चोरी की घटनाएं बढ़ रहीं हैं, महिलाओं का उस इलाके से निकलना मुश्किल हो गया है। उनका कहना था कि यह मस्जिद अवैध रूप से बनाई गई है और सरकार इस पर आंखें मूंदे बैठी है। हालाँकि, कांग्रेस मंत्री अनिरुद्ध को अपनी ही पार्टी के विधायकों का विरोध झेलना पड़ा। आखिर मुस्लिम समुदाय कांग्रेस का मुख्य वोट बैंक है, जो शुरू से पार्टी को एकमुश्त वोट देता रहा है, इसीलिए कांग्रेस 'लव जिहाद' के मुद्दे को मानती ही नहीं। इसी का खामियाज़ा अनिरुद्ध सिंह को भी भुगतना पड़ा ।
हिमाचल प्रदेश में काँग्रेस की सरकार है.. काँग्रेस के मंत्री अनिरुद्ध सिंह ने विधानसभा के फ्लोर पर जो कुछ कहा उससे उन लोगों की आँखें खुल जानी चाहिए जो आँखें बंद करके मुस्लिम तुष्टीकरण कर रहे हैं ।
— Ashok Shrivastav (@AshokShrivasta6) September 5, 2024
काँग्रेस के मंत्री ने कहा कि राज्य सरकार की जमीन पर वक्फ बोर्ड ने कब्जा करके अवैध… pic.twitter.com/6iLYhd9Yzy
लेकिन स्थानीय लोग तो अपनी संस्कृति बचाने के लिए आवाज़ उठा रहे हैं। विरोध करने वाले लोगों का कहना है कि इस तरह के अवैध निर्माणों से शहर की सांस्कृतिक पहचान और जनसांख्यिकी संरचना खतरे में पड़ गई है। सरकार ने इस मुद्दे को हल्के में लिया है, लेकिन शहर में तनाव बढ़ता जा रहा है और शिमला के भविष्य को लेकर चिंता गहरा रही है।
पहली बार लोगों को वेतन-पेंशन नहीं:-
हिमाचल प्रदेश के इतिहास में पहली बार सरकारी कर्मचारियों और पेंशनर्स को 1 तारीख को वेतन और पेंशन नहीं मिल सकी। राज्य पर इस वक्त करीब 94,000 करोड़ रुपये का कर्ज है, जो उसकी आर्थिक स्थिति को बेहद कमजोर बना रहा है। इस वित्तीय संकट के कारण राज्य सरकार को समय पर वेतन और पेंशन का भुगतान करना मुश्किल हो रहा है। 2022 के चुनावों में कांग्रेस ने मुफ्त बिजली और महिलाओं को हर महीने ₹1500 देने का वादा किया था, लेकिन इस तरह के वादों को पूरा करने के लिए आवश्यक संसाधनों की कमी के चलते राज्य की अर्थव्यवस्था चरमराने लगी है। अर्थशास्त्रियों ने पहले भी चेताया था कि ओल्ड पेंशन स्कीम (OPS) राज्य पर बोझ बन जाएगा, लेकिन सत्ता हासिल करने की कोशिश में कांग्रेस नहीं मानी और अब वही पेंशन देने के लिए राज्य सरकार के पास पैसा नहीं है।
सीमित आय और भारी कर्ज के चलते राज्य की स्थिति बेकाबू हो गई है। हिमाचल प्रदेश की मौजूदा वित्तीय स्थिति ऐसी है कि कांग्रेस सरकार अपने बजट का लगभग 40% हिस्सा केवल वेतन और पेंशन देने में खर्च कर रही है, जबकि करीब 20% हिस्सा कर्ज और ब्याज चुकाने में चला जाता है। तो बाकी 40 फीसद में राज्य कैसे चले ? उसमे से भी कुछ पैसा महिलाओं को आर्थिक मदद, बिजली सब्सिडी और अन्य फ्री के चुनावी वादों में जाता है।
हिमाचल प्रदेश के बजट 2024-25 को देखें तो सरकार ने ₹58,444 करोड़ का बजट पेश किया था, जिसमें राजकोषीय घाटा ₹10,784 करोड़ है। इस बजट का बड़ा हिस्सा पुराने कर्ज चुकाने और राज्य के कर्मचारियों की पेंशन और तनख्वाह देने में ही खर्च हो जाएगा। सरकार को पुराने कर्ज चुकाने के लिए ₹5479 करोड़ और ब्याज चुकाने के लिए ₹6270 करोड़ खर्च करने होंगे। इसके अलावा, सुक्खू सरकार तनख्वाह और पेंशन पर ₹27,208 करोड़ खर्च करेगी, जिससे कुल खर्च का 66% केवल इन मदों पर ही चला जाएगा। बाकी बचे 34 फीसद बजट में विकास कैसे होगा ? सुक्खू सरकार को अब पुराने कर्ज चुकाने के लिए नए कर्ज लेने पड़ रहे हैं।
अरे हिमाचल को बर्बाद कर के सुख की नींद सोते हुए सुक्खू @SukhuSukhvinder pic.twitter.com/lv04WS5XKR
— Sardar Lucky Singh???????? (@luckyschawla) September 5, 2024
इस आर्थिक संकट को देखते हुए मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने हाल ही में घोषणा की थी कि वे और उनके मंत्री दो महीने तक वेतन-भत्ता नहीं लेंगे। इसके साथ ही उन्होंने सभी विधायकों से भी दो महीने के लिए वेतन-भत्ता छोड़ने की अपील की थी। हालांकि, इससे राज्य की वित्तीय स्थिति पर कोई बड़ा प्रभाव नहीं पड़ेगा, लेकिन यह कदम जनता में संदेश भेजने के लिए उठाया गया है कि सरकार कुछ कर रही है, चाहे वे इस स्थिति के लिए जिम्मेदार ही क्यों न हों।
नशीली दवाओं का खतरा:-
हिमाचल प्रदेश में नशीली दवाओं का खतरा तेजी से बढ़ रहा है। राज्य, जो कभी अपनी शांत सुंदरता और पर्यटन के लिए जाना जाता था, अब नशीली दवाओं के दुरुपयोग और तस्करी का केंद्र बनता जा रहा है। कुल्लू, मनाली और मंडी जैसे क्षेत्रों में ड्रग्स की तस्करी और दुरुपयोग की घटनाएं आम हो गई हैं। यह समस्या खासकर युवाओं के बीच गंभीर रूप से फैल रही है और राज्य की युवा पीढ़ी के भविष्य को खतरे में डाल रही है। सरकार की ओर से इस समस्या से निपटने के लिए अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं, जिससे यह संकट और भी गहरा हो रहा है।
सुक्खू सरकार की नीतियों पर सवाल:-
सुक्खू के प्रशासन पर कुशासन और निष्क्रियता के आरोप लग रहे हैं। हाल ही में विधानसभा सत्र के दौरान उनकी सोते हुए हुए वीडियो वायरल हुई, जब विधानसभा में राज्य के आर्थिक संकट पर गंभीर चर्चा चल रही थी। इससे सवाल उठे कि क्या मुख्यमंत्री राज्य कि समस्याओं को लेकर गंभीर भी हैं ? क्योंकि जब समाधान की चर्चा के दौरान ही वो सो रहे हैं, तो समाधान वे क्या ही करेंगे। सरकार की आर्थिक स्थिति इतनी गंभीर है कि सुक्खू और उनके मंत्रियों ने दो महीने का वेतन और भत्ता न लेने का फैसला किया है। साथ ही उन्होंने सभी विधायकों से भी ऐसा करने की अपील की है। हालांकि, इससे राज्य की वित्तीय स्थिति पर कोई खास असर नहीं पड़ने वाला है, लेकिन यह कदम जनता के बीच एक नैरेटिव जरूर बना देगा कि सरकार कुछ कर रही है, भले ही ये समस्याएँ सरकार की नीतियों के कारण ही खड़ी हुईं हों।
खटाखट पॉलिटिक्स का असर:-
चुनावों के दौरान कांग्रेस ने कई मुफ्त सुविधाओं का वादा किया था, जिनमें बिजली और महिलाओं को ₹1500 की आर्थिक सहायता देना शामिल था। लेकिन राज्य की सीमित आय और भारी कर्ज के चलते ये योजनाएं अब सरकार के लिए बोझ बनती जा रही हैं, अगर सरकार के पास आमदनी होती, तो देने में कोई बुराई नहीं। लेकिन, आज राज्य की आर्थिक स्थिति इतनी खराब हो चुकी है कि सरकार के लिए इन्हें लागू करना मुश्किल हो गया है। इस तरह के वादों से राज्य की वित्तीय स्थिति और भी जटिल हो गई है। अब यह सवाल उठता है कि क्या हिमाचल प्रदेश की जनता को इस तरह की "मुफ्तखोरी" वाली राजनीति का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है? हालाँकि, जनता को कुछ देना गलत नहीं है, लेकिन इसके लिए आमदन का भी तो ख्याल रखना पड़ेगा या नहीं ? नेता अपनी जेब से तो कुछ देंगे नहीं, जो जनता से टैक्स आएगा, वही वापस लौटाएंगे, तो उसमे अनुपात होना चाहिए, ना कि सत्ता के लिए कुछ भी वादे। जिस प्रकार कांग्रेस के प्रमुख नेता राहुल गांधी ने महिलाओं को प्रति वर्ष 1 लाख रूपए देने का वादा किया था, वो भी एक बेतुका वादा था। आज 140 करोड़ की आबादी में से 25 करोड़ गरीब महिलाएं भी मानी जाएं, तो उन्हें हर साल 25 लाख करोड़ रुपए देंगे होंगे, जो भारत के कुल बजट का लगभग 55% है। इसके बाद शिक्षा, स्वास्थय, रक्षा, सड़क, पानी, बिजली, रेल, एयरपोर्ट, या नए निर्माणों के लिए पैसा कहाँ से आएगा ? सरकार कर्ज लेगी और फिर कर्ज चुकाने के लिए महंगाई बढ़ाएगी, यानी आखिरकार जनता से ही वसूलेगी।
कांग्रेस ने हिमाचल की सत्ता में आने के लिए भी ऐसे ही वादे किए थे। और अब मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के नेतृत्व में हिमाचल प्रदेश कई चुनौतियों से जूझ रहा है। अधूरे वादे, कुशासन, नशीली दवाओं का खतरा, तुष्टिकरण और आर्थिक संकट ने राज्य को कठिन स्थिति में डाल दिया है। राज्य की जनता का सरकार पर से विश्वास कम होता जा रहा है, और यह स्पष्ट हो रहा है कि सुक्खू सरकार को अपनी नीतियों और प्रशासनिक ढांचे में बड़े सुधार की जरूरत है, ताकि हिमाचल प्रदेश को इस संकट से बाहर निकाला जा सके।
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