गांधीनगर। गुजरात जो कि, भारत का एक औद्योगिक तौर पर संपन्न राज्य माना जाता है। जिस राज्य को लेकर कहा जाता है कि, यहां के युवा उद्यमशील होते हैं और, अधिकांशतः वे उद्योग करने में ही दिलचस्पी लेते हैं, मगर यहां जिस तरह से राजनीतिक बदलाव हुआ है, वह महत्वपूर्ण है। वर्ष 2002 में गोधराकांड के बाद, यहां पर मुख्यमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा सत्तासीन रही। अब नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री हैं। मगर, गुजरात में भाजपा की सरकार काबिज है। इसी बीच, ऐसा राजनीतिक परिवर्तन हुआ कि, अब भारतीय जनता पार्टी को अपने राजनीतिक गढ़ में ही मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।
यहां पर वे मतदाता जो कि, पाटीदार समुदाय से आते हैं, वे सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थाओं में प्रवेश को लेकर, आरक्षण की मांग कर रहे हैं। अब वे सरकार के खिलाफ, विपक्षियों के पक्ष में बोलने लगे हैं। ऐसे में भाजपा के लिए, इस चुनाव में कुछ मुश्किल नज़र आ रही है। यह बात भी सामने आई है कि, गुजरात के राजनीतिक जीवन में जाति, धर्म, संप्रदाय व समूह का विशेष प्रभाव नहीं था। गुजरात की राजनीति में और जनता के बीच, केशुभाई पटेल का विशेष प्रभाव था।
ऐसे में भाजपा ने वर्ष 1994 में उनके नेतृत्व में राज्य में दमदार असर छोड़ा। मिली जानकारी के अनुसार, 6 फरवरी 1984 में मोरबी के लखधीरजी इंजीनियरिंग काॅलेज के विद्यार्थियों व अन्य पिछड़ा वर्गों को माधवसिंह सोलंकी सरकार द्वारा, दिए गए 10 से 28 आरक्षण के विरूद्ध आंदोलन चलाया। यह बात भी सामने आई कि, गुजरात के राजनीतिक व सामाजिक समीकरण पर आरक्षण आंदोलन का विशेष असर रहा।
हालांकि वर्ष 2014 में केंद्र में भाजपा के सत्तासीन होने के बाद, शुरूआती दौर में हरियाणा, उत्तरप्रदेश में दलितों के प्रति हिंसा हुई। इस पर राजनीति गर्मा गई और, विभिन्न सरकारें एक दूसरे पर दोषारोपण करती रहीं लेकिन, इसी समय गुजरात में ऊना क्षेत्र में दलितों को पीटा गया। ऐसे में दलित वर्ग की सहानुभूति भारतीय जनता पार्टी के प्रति कथित तौर पर कुछ कम हुई।
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