मुंबई: महाराष्ट्र में बुधवार को बीजेपी विधायक दल की महत्वपूर्ण बैठक आयोजित होने जा रही है, जिसमें विधायक दल के नेता का चुनाव किया जाएगा। तत्पश्चात, बृहस्पतिवार को शपथ ग्रहण समारोह होगा। इन घटनाक्रमों के बाद ही यह स्पष्ट होगा कि राज्य की राजनीति के जिस अतृप्त अध्याय का सिलसिला पिछले 10 दिनों से जारी है, वह किसके पक्ष में खत्म होने जा रहा है। महायुति को ऐतिहासिक जनादेश मिलने के बावजूद और बहुमत से कहीं अधिक सीटों के बावजूद, महाराष्ट्र की राजनीति में इस समय एक अनिश्चितता का माहौल है, जहां कई सवालों के जवाब अब तक मिल नहीं पाए हैं।
वही इस संदर्भ में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी की हालिया टिप्पणी पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। नागपुर में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने एक किताब के विमोचन के दौरान मुस्कुराते हुए कहा, "राजनीति अतृप्त आत्माओं का महासागर है।" उन्होंने आगे कहा, "राजनीति में हर व्यक्ति उदासी का शिकार होता है। हर किसी के मन में उस पद से ज्यादा महत्वकांक्षाएँ होती हैं, जिस पर वह है। जीवन समझौतों, मजबूरियों, बाधाओं एवं विरोधाभासों का खेल है। चाहे वह पारिवारिक, सामाजिक, राजनीतिक या कॉर्पोरेट जीवन हो, जीवन हमेशा चुनौतियों और समस्याओं से भरा रहता है। इनसे निपटने के लिए आर्ट ऑफ लिविंग को समझना होगा।"
उन्होंने किसी का नाम नहीं लिया, किन्तु मंद मुस्कान के साथ सियासी तंज कसा, जो राजनीति के हाइवे पर एक बार फिर से पांच दिसंबर को तय होगा। यह साफ होगा कि ढाई वर्ष पहले जिन देवेंद्र फडणवीस को उपमुख्यमंत्री पद से संतोष करना पड़ा था, क्या उनकी अतृप्त राजनीति इस बार मुख्यमंत्री पद तक पहुंच पाएगी? दूसरी तरफ, जो एकनाथ शिंदे ढाई साल से सीएम हैं, क्या वे अब सीएम पद से दूरी बनाकर अपनी अतृप्त इच्छाओं का शिकार हो गए हैं तथा इसी कारण चार दिन बाद गांव से मुख्यमंत्री बंगले में लौटे हैं?
मुंबई के आजाद मैदान में शपथ ग्रहण कार्यक्रम के लिए तंबू गड़ा हुआ है और ढांचा तैयार हो रहा है। लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि शपथ कौन लेगा और कब लेगा। नतीजतन, अतृप्त इच्छाओं का ज्वार उठ रहा है। अब तक जो मंत्री रहे हैं, वे इस चिंता में हैं कि क्या उन्हें फिर से मंत्रिमंडल में जगह मिलेगी। वही नए विधायक भी इस चिंता में हैं कि क्या उन्हें मंत्री पद मिलेगा। पार्टियां भी चिंतित हैं कि कितने मंत्रियों की नियुक्ति होगी।
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