राजनीति का मैदान....नोटबंदी की गेंद.....य्ये....मारा.....

राजनीति का मैदान....नोटबंदी की गेंद.....य्ये....मारा.....
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देश की राजनीति....वाह...क्या कहना ! राजनीतिज्ञों को मुद्दे चाहिये...सामान्य जनता हो या फिर किसान हो या फिर मजदूर वर्ग ही क्यों न हो....कुछ न कुछ तो बोलना ही है....वरना राजनीति में रहने का मतलब ही क्या है....फिल भले ही बापड़ी जनता, मजदूर या किसान को किसी से कोई लेना-देना नहीं.....! मौजूदा राजनीति के अखाड़े में ’नोटबंदी की गेंद’ उछालने के लिये सत्ताधारी दल से लेकर कांग्रेस और कांग्रेस से लेकर अन्य सभी राजनीतिक दल उतरे हुये है....!
 मोदी सरकार ने ’नोटबंदी की गेंद’ का शाॅट ऐसा मारा था कि सीधे जनता के दिलों दिमाग पर लगा....झटका इतना तगड़ा आया कि कई लोग इस दुनिया को अलविदा कर गये...! खैर किसी अच्छे काम के लिये कुछ का बिगड़े तो भी कोई बात नहीं....! वैसे हम असल मुद्दे पर आते है......विपक्षी दलों पर....!

यह तो ऐसा हुआ जैसे....

विपक्षियों ने संसद से लेकर सड़क तक ऐसा हो हल्ला मचाया था कि एक बार तो यही महसूस हुआ कि कहीं विपक्ष की ताकत के सामने मोदी सरकार को झुकना  न पड़े! महसूस हुआ था कि अलग-अलग रहकर राजनीति की रोटी सेंकने वाले सभी विपक्षी दल एक जाजम पर आ जायेंगे और आने का प्रयास भी किया लेकिन.....ऐन वक्त पर सब पत्ते की तरह बिखर गये.....यह तो ऐसा ही हुआ कि किसी की शादी होने के पहले ही वह विधवा हो गई.....! 

नोटबंदी का विधवा विलाप......

नोटबंदी का ’विधवा विलाप’ करने वाले  विपक्षी दल ’राजनीति की ताकत’ को समझकर संभवतः एक हो जाते तो देश की राजनीति का इतिहास ही बदल जाता....परंतु राजनीति का तासीर ही ऐसी है कि इतिहास बदलने का मौका कैसे सामने आता....! 

राजनीति की कच्ची हंडी....

अब बात करें अपने ’पप्पु’ अर्थात राहुल गांधी की....तो ये बच्चे से कब बड़े बनेंगे....संभवतः इनके पास भी जवाब नहीं होगा....राजनीति खेल की ’कच्ची हंडी’ पप्पु जब भी बोलते है....मुंह की खाते है...फिर भी मंच पर खड़े होकर बोलने की हिम्मत जुटा लेते है...दाद देना होगी राहुल गांधी की हिम्मत की....! लालू प्रसाद यादव घाघ राजनीतिज्ञ है, लेकिन महागठबंधन के कारण मजबूरीवश चुप है...फिर भी नोटबंदी के खिलाफ बोलते रहे है और तो और अब अपने बिहार में महाधरना देना शुरू कर दिया....! उन्हें नीतीश कुमार से खुटका है क्योंकि नीतीश ने मोदी की नोटबंदी का समर्थन कर रखा है....! 

माया उलझी अपने ही जाल में....

मायावती अपने ही जाल में उलझ गई है...! नोटबंदी पर इतना बोली, इतना बोली कि बाद में तो लोगों ने.....! जब खुद की पार्टी के बैंक अकाउंट में करोड़ों सामने आये तो ’दलित की राजनीति का दांव खेलने लगी! अपने केजरीवाल....की जुबान अभी इसलिये बंद है क्योंकि वे ’जंग’ के चक्कर में उलझे हुये है। उन्हें इस बात का टेंशन है कि ’जंग’ चले तो गये, लेकिन अब जो भी आयेगा...वह भी मोदी के पाले का ही होगा....पता नहीं जंग से ज्यादा दुधारी तलवार हो तो....!
लब्बोलुआब राजनीति की ’महानता’ को लेकर कितनों ने ही कलम चलाई है, लेकिन मौजूदा स्थिति में तो राजनीति कुछ यूं ही नजर आती है...

शैतानी इरादों और इंसानी खुराफात का नाम है राजनीति
एक अधमरे नम पड़ चूके जज्बात का नाम है राजनीति
एक आदमखोर शेर की दहाड़ है राजनीति
मौत का तांडव करती चूड़ैल का प्रहार है राजनीति। 
                                                              -शीतल कुमार ’अक्षय’

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