औद्योगिक विकास के रास्ते में केंद्र एवं राज्य की राजनीति का रोड़ा सामने नहीं आ रहा है। इसके साथ ही पूरे देश में औद्योगिक विकास के लिए एक औद्योगिक नीति होगी।वहीं केंद्र और सभी राज्य सरकारें उस नीति को मानने के लिए बाध्य होंगी।इसके साथ ही डिपार्टमेंट ऑफ प्रमोशन ऑफ इंडस्ट्री एंड इंटर्नल ट्रेड (डीपीआइआइटी) को ऐसी ही नीति बनाने के लिए कहा गया है। केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल के मुताबिक हाल ही में उन्होंने डीपीआइआइटी को औद्योगिक विकास के लिए ऐसी नीति बनाने का प्रस्ताव दिया है जो वैधानिक रूप से केंद्र एवं राज्य दोनों के लिए लागू हो सके। इसके साथ ही नीति का प्रारूप ऐसा हो कि केंद्र एवं राज्य दोनों ही औद्योगिक विकास में एक-दूसरे के पार्टनर बन सकें। वहीं केंद्र एवं राज्य हर हाल में उस नीति का पालन करें, इसके लिए रेगुलेटरी फ्रेमवर्क तैयार किया जाएगा।
औद्योगिक विकास की नीति में राज्य एवं केंद्र दोनों के लिए रिवार्ड एवं पेनाल्टी का प्रावधान होगा। अगर कोई राज्य उस नीति को मानने या अपनी प्रतिबद्धता से पीछे हटता है तो उसके खिलाफ प्रावधान के तहत कार्रवाई की जा सकेगी। असल में ऐसा कई बार देखा गया है कि औद्योगिक नीति में भी राजनीतिक विचारधारा आड़े आ जाती है। ऐसे में केंद्र एवं राज्य सरकार की अलग-अलग नीतियां एवं रुख होने की वजह से उद्यमियों को उसका खामियाजा उठाना पड़ता है। राज्य औद्योगिक विकास के लिए अलग नीति बनाते हैं और कई मामलों में केंद्र की नीति से वह बिल्कुल भिन्न होती है।
उदाहरण के तौर पर बौद्धिक संपदा व इनोवेशन के लिए पेटेंट के मामले में कई बार राज्यों एवं केंद्र के बीच मतभेद होता है। ऐसे में कंपनियों को या इनोवेशन करने वालों को सही लाभ नहीं मिल पाता है। राज्य में कई बार सरकार बदल जाने पर नई सरकार नए सिरे से औद्योगिक नीति लाती है जिससे संपूर्ण औद्योगिक विकास पर असर पड़ता है।सूत्रों के अनुसार अभी वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री का यह प्रस्ताव शुरुआती स्तर पर है, परन्तु उद्देश्य औद्योगिक विकास के रास्ते में आने वाली बाधाओं को दूर करना है चाहे वह केंद्र के स्तर पर हो या राज्य के स्तर पर। इसके साथ ही डीपीआइआइटी की तरफ से ड्राफ्ट तैयार होने के बाद राज्य सरकारों से इस मामले में चर्चा की जा सकती है ।
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