कानपुर: सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक गतिविधियों को समेटे कानपुर आज धूल, धुआं और गैसों के भंवर में फंसकर कराह रहा है। कभी कपड़ा मिलों की वजह से पूरब का मैनचेस्टर कहलाने वाला शहर आज गंदगी के लिए बदनाम हो गया है। इसकी फिजाओं में प्रदूषण की कालिख दिन ब दिन गहराती जा रही है। वायुमंडल में हानिकारक गैसों का घनत्व बढ़ता ही जा रहा है।
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बता दें कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) और उप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) की ओर से जारी आंकड़े चौंकाने वाले हैं। पिछली दीपावली की तुलना में इस बार कई गुना अधिक प्रदूषण रहा। वायुमंडल में जहरीली गैसों का भयानक स्तर सर्दी से पहले का है, कोहरा पडऩे पर क्या स्थिति होगी, सोचकर भी दिल कांप उठता है। क्षेत्रीय अधिकारी, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड कुलदीप मिश्र का कहना है कि दीपावली के समय शहर के ऊपर पर्टिकुलेट मैटर और अन्य गैसों का सर्वाधिक घनत्व हो गया था। यह कई साल का रिकार्ड है। इससे पूर्व अधिकतम 600 तक ही वायु गुणवत्ता सूचकांक गया है।
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वहीं एचबीटीयू के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के प्रो. दीप्तिक परमार के मुताबिक शहर में दिल्ली से अधिक प्रदूषण हो जाता है। यहां सबसे अधिक धूल उडऩे की समस्या है। सड़कों के किनारे कच्चे हैं, जिन पर वाहनों के चलने से धूल और गर्द उडऩा स्वाभाविक है। वहीं अर्थ साइंस डिपार्टमेंट, आइआइटी के प्रो. इंद्रशेखर सेन का कहना है कि कानपुरवासियों को वायु प्रदूषण के खतरे को देखते हुए जागरूक होना पड़ेगा। जगह-जगह कूड़ा, करकट जलने से रोकना होगा। बेवजह वाहनों के प्रयोग से बचें।
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