पोंगल भारत के दक्षिण राज्यों के प्रमुख त्योहारों में से एक है। इसके अलावा केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश सभी राज्यों में हर तबके के लोग धूमधाम से मनाते हैं। वही यह त्योहार यहां मुख्य रूप से नई फसल की खुशियां मनाने की परंपराओं से जुड़ा है। दक्षिण भारत में पोंगल से नववर्ष की शुरुआत मानी जाती है। भोगी पोंगल के साथ ही तमिलनाडु में चार दिवसीय पोंगल पर्व की शुरुआत हो गई। पहले दिन मंगलवार को भोगी पोंगल के अवसर पर पुराने कपड़े जलाये गए। स्कूल-कॉलेजों में विद्यार्थियों ने अपने ही अंदाज में पोंगल सेलिब्रेट किया जाता है । इसके अलावा पोंगल के पहले दिन को भोगी पोंगल कहा जाता है।
वही संपन्नता और सर्दी के मौसम की समाप्ति का त्योहार मनाने के लिए एक बड़ा अलाव जलाया जाता है। कई परिवार घर की पुरानी अनुपयोगी चीजों को अलाव में डालते हैं। दूसरे दिन को तई पोंगल या सूर्य पोंगल कहा जाता है। इसके साथ ही इस दिन भगवान सूर्य की पूजा होती है और मीठा पोंगल उनको भेंट किया जाता है। तीसरे दिन माट्टू पोंगल मनाया जाता है। दिन पशुओं की देखभाल, पूजा तथा उनकी सेवाओं को मनाने के लिए होता है। यदि बात की जाए माट्टू पोंगल के दिन ही ब्राह्मण परिवारों में भाइयों की सुख-समृद्धि की कामना लिए चावल की विविध किस्मों और मीठे पोंगल की भेंट केले के पत्ते पर रखकर चढ़ाई जाती है जिसे कणुपुड़ी रखना कहा जाता है।
वही यदि बात की जाए चौथे दिन काणुम पोंगल मनाया जाता है। इस दिन लोग एक हल्दी के पत्ते को धोकर इसे जमीन पर बिछाते हैं और इस पर एक दिन पहले का बचा हुआ मीठा पोंगल रखते हैं। इसमेें गन्ना और केला भी शामिल किया जाता है। इसके अलावा कात्या पोंगल 17 जनवरी को मनाया जायेगा । इस दिन पक्षियों विशेषकर कौए को दाना खिलाया जाता है। इस महिलाएं चावलों को रंगकर उनकी छोटी-छोटी गोलियां बनाकर कौओं को खिलाती हैं। इस रिवाज को यहां ‘काका पुदी कन्नू पुदी’ कहा जाता है। ऐसा करते हुए महिलाएं अपने भाई के लिए खुशियों की कामना करती हैं। इस दिन को कन्नुम पोंगल भी कहा जाता है। यहां पर कन्नुम पोंगल के दिन दोस्तों और रिश्तेदारों के यहां भी घूमने जाते हैं।
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