मध्यप्रदेश : एकतरफ तो मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार गरीबो को अच्छी से अच्छी स्वास्थ सेवाए देने की घोषणाएं करते है वही दूसरी और इन घोषणाओ की पोल खोल देने वाली घटनाये सामने आ रही है। घटनाये भी ऐसी जिनसे न सिर्फ सरकार के वादों की पोल खुल रही है बल्कि इंसानियत भी शर्मसार हो रही है। प्रदेश में गरीब इंसान की हालात इस कदर दयनीय हो रही है की अब उन्हें अपनों की लाश को भी कंधो पर ढोना पड़ रहा है।
मामला सिवनी का जहा अस्पताल ले जाते समाय बेटे के कंधों पर ही मां ने दम तोड़ दिया। मां को वापस घर ले जाने के लिए बेटे ने एंबुलेंस को फोन करके मिन्नतें की, लेकिन कोई नहीं पहुंचा। तब वह बाइक पर ही अपने मां के शव को रखकर गांव की ओर निकला। जानकारी के मुताबिक सिवनी में बीमार मां को बाइक में बैठाकर इलाज के लिए बरघाट अस्पताल ला रहे बेटे के कंधे में बीमार मां ने अस्पताल पहुंचने से पहले दम तोड़ दिया। मां की लाश को वापस घर लाने के लिए बेटे ने संजीवनी 108 एंबुलेंस और 100 डायल पर कई बार फोन करके मिन्नत की, लेकिन उन्होंने शव को ले जाने से इनकार कर दिया।
एंबुलेंस समय पर न पहुंचने पर परिजन ही खाट में अस्पताल लेकर पहुंचे मरीज को
वही दूसरी घटना रतलाम जिला मुख्यालय से करीब 10 किमी दूर स्थित ग्राम गंगाखेड़ी निवासी अयोध्याबाई मंगलवार सुबह पैदल- पैदल अपने 7 साल के बुखार से पीड़ित बच्चे रोहन को लेकर उम्मीद की आस के साथ बाल अस्पताल पहुंची। शाम करीब 4.45 पर मासूम रोहन की मौत हो गई। बच्चे की मौत के बाद बदहवास मां अयोध्याबाई ने पाने लाल की मौत का कारण गरीबी बताया। पूर्व पार्षद गोविंद काकानी ने वाहन की व्यवस्था कर अयोध्याबाई को उसके मृतक पुत्र के साथ गांव भेजने की व्यवस्था की। बताया जाता है कि मृतक रोहन के पिता रामेश्वर मानसिक रूप से कमजोर बताए जा रहे हैं। बदहवास मां अपने एकलोते बेटे का शव आंचल से लिपटकाकर मायूसी के साथ गांव लेकर रवाना हुई।
एंबुलेंस नहीं मिली तो लाश की गठरी बनाकर पोस्टमार्टम के लिए पहुंचाया
मां का आरोप: मैं गरीब हूं, इसलिए सरकारी अस्पताल में उसके बेटे की मौत हुई। सुबह से बेटे की हालत गंभीर बनी हुई थी और बार-बार डॉक्टर को बुलाने के लिए नर्सों ने उल्टा जवाब दिया कि डॉक्टर शाम को आएंगे। बच्चे को समय पर बेहतर उपचार मिलता तो उसकी मौत नहीं होती। जिला अस्पताल की तरह बाल अस्पताल में भी अब उपचार को लेकर मरीज व परिजन परेशान हो रहे हैं। बेहतर इलाज से बच्चों के स्वस्थ होने की उम्मीद लेकर आए परिजन सदमें में आ गए।
बच्चे को जन्म देने के लिए पैदल तय करना पड़ा 6 किलोमीटर का सफर
मौसम के बदले मिजाज के चलते बच्चों में बीमारियों का असर हो रहा है जिसके चलते अस्पताल में क्षमता से अधिक संख्या में परिजन बच्चों को लेकर उपचार के लिए पहुंच रहे हैं। हालात यह है कि बरामदे में ही बच्चों को स्लाइन चढ़ाई जा रही है। इमरजेंसी में उपचार के लिए कोई नहीं मिलता।
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