भारत में काफी समय से नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के विरोध में हुए हिंसक प्रदर्शनों में जिस तरह कश्मीर की तर्ज पर पत्थरबाजी की घटनाएं सामने आई हैं, उसने खुफिया एजेंसियों से लेकर पुलिस तक को कई संगठनों की जड़ें खंगालने पर मजबूर कर दिया है.
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मीडिया रिपोर्ट के अनुसार लखनउ में पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआइ) की प्रदेश अध्यक्ष वसीम अहमद समेत तीन सक्रिय सदस्यों की गिरफ्तारी के बाद यह बात भी साफ हो गई है कि हिंसा के पीछे गहरा षड्यंत्र था. लखनऊ में करीब छह माह पहले खुफिया तंत्र को इसके संकेत तब मिले थे, जब खुर्रमनगर क्षेत्र में कुछ पोस्टर चस्पा किए गए थे. उन पोस्टरों में एक युवक को हाथ में पत्थर लिए दिखाया गया था और सरकार के खिलाफ भड़काने की कोशिश की गई थी. पीएफआइ के प्रतिबंधित संगठन स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) से कनेक्शन भी सामने आए हैं. सूत्रों का कहना है कि कुछ अन्य संगठनों की मदद से पीएफआइ करीब एक साल से उत्तर प्रदेश में हिंसा भड़काने की फिराक में था.
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अपने बयान में डीजीपी ओपी सिंह का कहना है कि यूपी पुलिस ने करीब छह माह पूर्व पीएफआइ को प्रतिबंधित किए जाने के लिए केंद्र सरकार को पत्र लिखा था. हिंसा में पीएफआइ की भूमिका सामने आने के बाद केंद्र सरकार को रिमांइडर भेजकर संगठन को प्रतिबंधित किए जाने की सिफारिश की जाएगी. बता दे कि पीएफआइ की नींव केरल में रखी गई थी. खुफिया रिपोर्ट के अनुसार 22 नवंबर 2006 को केरल के कालीकट में पीएफआइ का गठन हुआ था और जुलाई 2007 में कर्नाटक में इस संगठन का रजिस्ट्रेशन कराया गया था. पीएफआइ अपने सहयोगी संगठनों के साथ मिलकर काम करता है. पीएफआइ ने अपने महिला व स्टूडेंट फ्रंट भी बनाए हैं. खुफिया रिपोर्ट में सिमी के कई सक्रिय पदाधिकारियों व सदस्यों के पीएफआइ से जुड़े होने के तथ्य भी सामने आ चुके हैं. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में शामली, बिजनौर व मुजफ्फरनगर में संगठन की जिला कार्य समिति काम करती रही है.
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