पटना: जदयू के उपाध्यक्ष बनने के बाद यह प्रशांत किशोर की पहली रणनीतिक जीत थी। जानकारी के अनुसार बता दें कि यह उनकी पहली परीक्षा भी थी, जिसमें वे पास हो गए। वहीं बता दें कि अगर हार होती, तो पीके के लिए दल में रहना दुश्वार हो जाता। जीत गए हैं इसलिए, विरोधी भी सराह रहे हैं।
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इसके साथ ही बता दें कि जदयू की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि 13 साल सत्ता में रहने के बावजूद उसका छात्र संगठन पटना विश्वविद्यालय परिसर में लगभग वनवास ही झेल रहा था। बड़े दलों के छात्र संगठनों के सामने उसकी हैसियत कुछ नहीं थी। बमुश्किल काउंसलर के कुछ पदों पर जीत हो पाती थी। इसके साथ ही बता दें कि इस बार उसे अध्यक्ष के साथ कोषाध्यक्ष का भी पद मिल गया। जबकि सेंट्रल पैनल के पांच पदों में से अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद एबीवीपी ने उपाध्यक्ष, महासचिव और संयुक्त सचिव का पद अपने नाम किया है। एबीवीपी पिछले चुनाव में भी तीन पदों पर जीती थी।
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गौरतलब है कि यह चुनाव इस लिहाज से भी अहम हो गया था कि प्रशांत किशोर पर चुनाव को प्रभावित करने के आरोप लगे। वहीं बता दें कि भाजपा के दो विधायक उनकी गिरफ्तारी की मांग को लेकर धरने पर भी बैठे थे। असल में पहली बार जदयू का छात्र संगठन नियोजित ढंग से और मुद्दों से लैस होकर छात्रों के बीच गया।
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