झाबुआ/ब्यूरो। माननीय मुख्यमंत्री की घोषणा के परिपालन में मध्यप्रदेश शासन, संस्कृति विभाग द्वारा तैयार रामकथा साहित्य में वर्णित वनवासी चरितों पर आधारित “वनवासी लीलाओं“ क्रमशः भक्तिमती शबरी और निषादराज गुह्य की प्रस्तुतियां जिला प्रशासन के सहयोग से प्रदेश के 89 जनजातीय ब्लॉकों में होंगी। इस क्रम में जिला प्रशासन-झाबुआ के सहयोग से दो दिवसीय वनवासी लीलाओं की प्रस्तुतियां आयोजित की जा रही हैं। प्रस्तुतियों की श्रृंखला में सर्वप्रथम 16 अक्टूबर, 2022 को शासकीय हायर सेकेंड्री स्कूल थाने के सामने, मेघनगर, जिला झाबुआ में सुश्री कीर्ति प्रमाणिक, उज्जैन के निर्देशन में भक्तिमति शबरी की प्रस्तुति दी गई। कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्जवलन से हुआ से हुआ। इस दौरान मंडल अध्यक्ष बीजेपी श्री सचिन प्रजापति, पार्षद पूनमचंद्र वासुनिया, पार्षद अयय जी डामोर के साथ अन्य जनप्रतिनिधि मौजूद रहे।
वहीं 17 अक्टूबर को श्री विशाल कुशवाहा, उज्जैन के निर्देशन में वनवासी लीला नाट्य निषादराज गुह्य की प्रस्तुति दी गई। साथ ही 17 अक्टूबर को दशहरा मैदान, थांदला जिला झाबुआ में सुश्री कीर्ति प्रमाणिक, उज्जैन के निर्देशन में भक्तिमति शबरी की प्रस्तुति दी गई। 18 अक्टूबर को वनवासी लीला निषादरागुह्य की प्रस्तुति दी जायेगी। 18 अक्टूबर एवं 19 अक्टूबर को थाना पेटलावाद के सामने शासकीय उत्कृष्ट विद्यालय पेटलवाद, जिला झाबुआ में इन लीलाओं का मंचन होगा। इन दोनों ही प्रस्तुति का आलेख श्री योगेश त्रिपाठी एवं संगीत संयोजन श्री मिलिन्द त्रिवेदी द्वारा किया गया है। यह दो दिवसीय कार्यक्रम प्रतिदिन सायं 7.30 बजे से आयोजित किया जा रहा है।
लीला की कथाएं
वनवासी लीला नाट्य भक्तिमति शबरी कथा में बताया कि पिछले जन्म में माता शबरी एक रानी थीं, जो भक्ति करना चाहती थीं लेकिन माता शबरी को राजा भक्ति करने से मना कर देते हैं। तब शबरी मां गंगा से अगले जन्म भक्ति करने की बात कहकर गंगा में डूब कर अपने प्राण त्याग देती हैं। अगले दृश्य में शबरी का दूसरा जन्म होता है और गंगा किनारे गिरि वन में बसे भील समुदाय को शबरी गंगा से मिलती हैं। भील समुदाय़ शबरी का लालन-पालन करते हैं और शबरी युवावस्था में आती हैं तो उनका विवाह करने का प्रयोजन किया जाता है लेकिन अपने विवाह में जानवरों की बलि देने का विरोध करते हुए, वे घर छोड़ कर घूमते हुए मतंग ऋषि के आश्रम में पहुंचती हैं, जहां ऋषि मतंग माता शबरी को दीक्षा देते हैं। आश्रम में कई कपि भी रहते हैं जो माता शबरी का अपमान करते हैं। अत्यधिक वृद्धावस्था होने के कारण मतंग ऋषि माता शबरी से कहते हैं कि इस जन्म में मुझे तो भगवान राम के दर्शन नहीं हुए, लेकिन तुम जरूर इंतजार करना भगवान जरूर दर्शन देंगे। लीला के अगले दृश्य में गिद्धराज मिलाप, कबंद्धा सुर संवाद, भगवान राम एवं माता शबरी मिलाप प्रसंग मंचित किए गए। भगवान राम एवं माता शबरी मिलाप प्रसंग में भगवान राम माता शबरी को नवधा भक्ति कथा सुनाते हैं और शबरी उन्हें माता सीता तक पहुंचने वाले मार्ग के बारे में बताती हैं। लीला नाट्य के अगले दृश्य में शबरी समाधि ले लेती हैं।
वनवासी लीला नाट्य निषादराज गुह्य में बताया कि भगवान राम ने वन यात्रा में निषादराज से भेंट की। भगवान राम से निषाद अपने राज्य जाने के लिए कहते हैं लेकिन भगवान राम वनवास में 14 वर्ष बिताने की बात कहकर राज्य जाने से मना कर देते हैं। आगे के दृश्य गंगा तट पर भगवान राम केवट से गंगा पार पहुंचाने का आग्रह करते हैं लेकिन केवट बिना पांव पखारे उन्हें नाव पर बैठाने से इंकार कर देता है। केवट की प्रेम वाणी सुन, आज्ञा पाकर गंगाजल से केवट पांव पखारते हैं। नदी पार उतारने पर केवट राम से उतराई लेने से इंकार कर देते हैं। कहते हैं कि हे प्रभु हम एक जात के हैं मैं गंगा पार कराता हूं और आप भवसागर से पार कराते हैं इसलिए उतरवाई नहीं लूंगा। लीला के अगले दृश्यों में भगवान राम चित्रकूट होते हुए पंचवटी पहुंचते हैं। सूत्रधार के माध्यम से कथा आगे बढ़ती है। रावण वध के बाद श्री राम अयोध्या लौटते हैं और उनका राज्याभिषेक होता है। लीला नाट्य में श्री राम और वनवासियों के परस्पर सम्बन्ध को उजागर किया गया।
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