नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो दिवसीय दौरे पर लाओस पहुंच गए हैं, जहां वे 21वें आसियान-भारत शिखर सम्मेलन और 19वें पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेंगे। इस समय लाओस आसियान की अध्यक्षता कर रहा है। इस दौरे के महत्व को देखते हुए यह समझना जरूरी है कि लाओस, भारत के लिए रणनीतिक रूप से क्यों महत्वपूर्ण है।
लाओस की आबादी लगभग 77 लाख है और यह दक्षिण पूर्व एशिया का एकमात्र लैंडलॉक देश है। इसकी सीमाएं उत्तर-पश्चिम में म्यांमार और चीन, पूर्व में वियतनाम, दक्षिण-पूर्व में कंबोडिया और पश्चिम तथा दक्षिण-पश्चिम में थाईलैंड से मिलती हैं। चीन और म्यांमार से इसकी सीमाएं लगी होने के कारण, भारत के लिए यह रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हो जाता है। इसके अलावा, दक्षिण पूर्व एशिया में इसकी भौगोलिक स्थिति के कारण यह व्यापारिक दृष्टिकोण से भी अहम है। इसी वजह से, अतीत में इसपर फ्रांस और जापान का कब्जा रहा है। 1953 में आजादी मिलने के बाद, चीन ने भी यहां अपनी उपस्थिति बढ़ाने की कोशिश की।
भारत ने लाओस के साथ फरवरी 1956 में कूटनीतिक संबंध स्थापित किए थे, जो उसकी स्वतंत्रता के तीन साल बाद हुआ। भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 1954 में लाओस का दौरा किया था, और भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने 1956 में लाओस की यात्रा की थी। यह संबंध इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि दक्षिण चीन सागर में चीन की बढ़ती गतिविधियों के कारण भारत लाओस को एक रणनीतिक साझेदार के रूप में देखता है।
लाओस की मेकांग नदी इस देश के लिए एक प्रमुख परिवहन मार्ग है, जो कार्गो और यात्रियों के आवागमन में सहायता करती है। इस नदी पर बनी जलविद्युत परियोजनाओं से लाओस अपने पड़ोसी देशों को बिजली सप्लाई भी करता है। 2008 में, भारत ने लाओस में एक एयर फोर्स एकेडमी खोलने का फैसला लिया था और समय-समय पर लाओस की सेना को आधुनिक तकनीक भी प्रदान की है। इसके अलावा, भारत ने सिंचाई और विद्युत परियोजनाओं में भी सहयोग दिया है। विज्ञान, प्रौद्योगिकी और व्यापार से जुड़े कई समझौते दोनों देशों के संबंधों को मजबूत करते हैं।
लाओस ने भी समय-समय पर भारत का समर्थन किया है। वह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत के स्थायी सदस्य बनने के प्रयासों का समर्थन करता रहा है। राम मंदिर के उद्घाटन के समय, लाओस ने भगवान राम पर एक डाक टिकट जारी किया था, ऐसा करने वाला वह दुनिया का पहला देश था। कोरोना महामारी के दौरान भी भारत ने लाओस को सहायता प्रदान की थी, जिसकी वहां के लोगों ने काफी सराहना की।
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