नई दिल्ली: राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) की एक विशेष अदालत ने 2016 में उत्तर प्रदेश के कानपुर में एक सेवानिवृत्त स्कूल प्रिंसिपल रमेश बाबू शुक्ला (60) की हत्या करने वाले दो आतंकियों आतिफ मुजफ्फर और मोहम्मद फैसल को मौत की सजा सुनाई है, साथ ही उनमें से प्रत्येक पर पांच लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया है। यह राशि पीड़ित के परिजनों को सौंप दी जाएगी। अदालत ने उन्हें आतंकवादी संगठन 'इस्लामिक स्टेट' (ISIS) के एजेंडे को बढ़ावा देने का भी दोषी पाया है।
अदालत ने कहा कि, ''रमेश बाबू शुक्ला की हत्या सामान्य श्रेणी में नहीं आती, क्योंकि उनकी हत्या आरोपियों ने प्रतिबंधित आतंकी समूह इस्लामिक स्टेट (ISIS) के प्रति प्रतिबद्धता दिखाने के लिए की थी और हत्या यह सुनिश्चित करने के बाद की गई थी कि शुक्ला एक गैर-मुस्लिम थे।" कोर्ट ने यह भी कहा कि, ''दोषियों की मृतक से कोई दुश्मनी नहीं थी और न ही मृतक ने मुसलमानों के खिलाफ कोई आपत्तिजनक टिप्पणी की थी। इस हत्या को करने का मकसद शरीयत (इस्लामिक कानून) फैलाना और गैर-मुसलमानों के बीच आतंक पैदा करना था।''
एक रिपोर्ट के अनुसार, निर्दोष प्रिंसिपल को केवल उसकी धार्मिक पहचान के कारण निशाना बनाया गया था। इसमें लिखा था कि कथित तौर पर दोनों आतंकियों ने सेवानिवृत्त हिंदू शिक्षक की कलाई पर कलावा और माथे पर तिलक देखकर उन्हें दिनदहाड़े गोली मार दी थी। इसके अलावा, आतंकवादियों ने हत्या को केवल इसलिए अंजाम दिया, क्योंकि वे उस नई पिस्तौल का परीक्षण करना चाहते थे, जो उन्होंने हाल ही में अपने आकाओं से हासिल की थी और इसलिए भी क्योंकि वे गैर-मुसलमानों के बीच डर पैदा करना चाहते थे।
बता दें कि, विष्णुपुरी निवासी रमेश बाबू शुक्ला की 24 अक्टूबर 2016 को उस समय हत्या कर दी गई थी, जब वह साइकिल से घर लौट रहे थे। जब वह प्योंदी गांव के पास पहुंचे तो आतंकियों ने उन पर हमला कर दिया। पहले तो पुलिस ने मामले को साधारण हत्या का मामला मानकर जांच शुरू की और अज्ञात लोगों के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया। इसी बीच मार्च 2017 में भोपाल-उज्जैन पैसेंजर ट्रेन में जानलेवा धमाका हुआ। 7 मार्च, 2017 को ट्रेन विस्फोट में 10 लोग घायल हो गए। इस मामले की जांच भी NIA ने की थी। इस्लामिक स्टेट (ISIS) समर्थित आपराधिक साजिश मामले में सफलता तब मिली, जब मुख्य आरोपी मोहम्मद फैसल खान को 7 मार्च, 2017 के मध्य प्रदेश ट्रेन विस्फोट में शामिल होने के लिए गिरफ्तार किया गया था। उसके द्वारा किए गए खुलासे के कारण आतिफ मुजफ्फर सहित उसके अन्य सहयोगियों की गिरफ्तारी हुई।
योगी सरकार का प्रहार, आतंकवाद की हार
— Asim Arun (@asim_arun) September 15, 2023
मार्च 2017 में जब @Uppolice ATS की कमान मेरे पास थी तब ठाकुरगंज, लखनऊ में आतंकी सैफ़ुल्लाह को मुठभेड़ में मार गिराया गया था।
NIA स्पेशल कोर्ट में सुनवाई चली, जिसमें मैंने पुलिस सेवा छोड़ने के बाद भी कई बार बयान दिए।
प्रभावी साक्ष्य और… pic.twitter.com/lDHSL5t8CF
इस साल मार्च में NIA कोर्ट ने 2017 में दर्ज एक आतंकी साजिश मामले में आतिफ, फैसल और पांच अन्य को मौत की सजा सुनाई थी। मामले में एक अन्य आरोपी मोहम्मद आतिफ को आजीवन कारावास की सजा दी गई थी। इस ट्रेन ब्लास्ट मामले में पूछताछ के दौरान कानपुर के सेवानिवृत्त प्रिंसिपल रमेश बाबू शुक्ला (60) की हत्या में आतिफ मुजफ्फर और मोहम्मद फैसल खान की भूमिका सामने आई थी। इस बीच, NIA कोर्ट ने आतिफ मुजफ्फर और मोहम्मद फैसल खान पर आईपीसी 320 (हत्या) और 120 (बी) (आपराधिक साजिश) की धाराओं के साथ-साथ गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) और शस्त्र अधिनियम की धाराओं के तहत आरोप लगाया था।
4 सितंबर को, NIA ने एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि 2018 में दोषियों आतिफ मुजफ्फर और मोहम्मद फैसल खान के खिलाफ दायर आरोपपत्र से पता चला था कि वे आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट (ISIS) की विचारधारा से कट्टरपंथी हो गए थे और जिन्हें वे 'काफिर' (गैर-मुस्लिम) मानते थे, उन्हें मारने के लिए निकले थे। NIA के प्रेस नोट के अनुसार, 'NIA की जांच से पता चला कि आरोपी एक प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट (ISIS) के प्रभाव में काम कर रहे थे। उन्होंने हिंसक कृत्यों के माध्यम से गैर-मुस्लिमों को निशाना बनाकर भारत में आतंकवादी गतिविधियों (जिहाद) को अंजाम देने की साजिश रची थी।
इस्लामिक स्टेट (ISIS) की विचारधारा और एजेंडे को बढ़ावा देने की अपनी साजिश को आगे बढ़ाने के लिए, उन्होंने आम लोगों के मन में आतंक और भय पैदा करने के लिए शुक्ला की हत्या कर दी थी। इससे पहले 7 मार्च 2017 को मामले के तीसरे आरोपी मोहम्मद सैफुल्ला को उत्तर प्रदेश के आतंकवाद निरोधी दस्ते के साथ मुठभेड़ में मार गिराया गया था।
हिन्दू थे प्रिंसिपल, इसलिए मार डाला:-
भोपाल-उज्जैन पैसेंजर ट्रेन ब्लास्ट मामले में पूछताछ के दौरान गिरफ्तार इस्लामिक स्टेट (ISIS) के आतंकवादियों ने खुलासा किया कि उनके दो साथियों- आतिफ मुजफ्फर और मोहम्मद फैसल खान ने मोहम्मद सैफुल्लाह के साथ मिलकर 'काफिरों' के मन में दहशत पैदा करने और ISIS के प्रभाव में वृद्धि करने के लिए सेवानिवृत्त प्रिंसिपल रमेश बाबू शुक्ला की हत्या कर दी थी। आतिफ मुजफ्फर और मोहम्मद फैसल ने पूछताछ के दौरान यह भी कबूल किया कि वे गैर-मुसलमानों (काफिर) के मन में आतंक पैदा करना चाहते थे और ISIS के प्रभाव को मजबूत करना चाहते थे। उन्होंने आगे कहा कि उनके संचालकों ने उन्हें बिल्कुल नई बंदूकें दी थीं, इसलिए उन्होंने इसका परीक्षण करने के लिए किसी की हत्या करने का फैसला किया।
दोनों ने 24 अक्टूबर, 2016 को राम बाबू शुक्ला को देखा, जब वह अपनी साइकिल से वापस जा रहे थे। आतंकियों ने उन्हें एक हिंदू के रूप में पहचाना, क्योंकि उन्होंने माथे पर तिलक और कलाई पर कलावा पहना हुआ था। शुक्ला से उनके नाम के बारे में पूछताछ की गई। जैसे ही उन्होंने अपना नाम बताया और बताया कि वह हिंदू हैं, दोनों ने अपनी रिवॉल्वर से पूर्व प्रिंसिपल को गोली मार दी और मौके से भाग गए। NIA ने हत्या में इस्तेमाल की गई पिस्टल को लखनऊ के हाइड हाउस से बरामद कर लिया था। प्रिंसिपल के शरीर से बरामद गोली की जांच एफएसएल चंडीगढ़ में करायी गयी थी। जांच करने पर पता चला कि रमेश बाबू शुक्ला की मौत हाइड हाउस से बरामद पिस्तौल से चली गोली से हुई थी।